गुरुवार, अगस्त 27, 2009

भीड़ में भी हैं तन्हा.....: नया पता

भीड़ में भी हैं तन्हा.....: नया पता
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नया पता

पता नया है ,लोग पुराने
कुछ जाने से कुछ अनजाने

आओ नए लोगो से मिलाए
और पुराने भी मिल जाए

शहर नया है ,रंग पुराने
कुछ फीके से ,कुछ बेगाने
कुछ अपने से ,कुछ अनजाने

मेरे नए घर जब आना
नए सरूपे फूल ले आना
शब्दों की बारिश बरसाना
भावो की बरात सजाना
आज भी आना कल भी आना .

मेरा नया पता है :

http://www.thepoeticwanderer.wordpress.com

अब से मुझे यहाँ मिले । शुक्रिया ,आपकी हौसला आवजाही का ,आपकी शाबासी और प्रोत्साहन का ।

गायत्री

सोमवार, जून 22, 2009

ग्लानि ....

"कौन है ?!! " मंजली ने झल्लाते ही दरवाज़ा खोला.

दोपहर के ३ बज रहे थे. न अम्मा जी को इस वक़्त परेशान होना पसंद था ,न मंझली को. सारा दिन काम करने के बाद ये दो घंठे दोपहर में आंख लगने की फुर्सत मिलती थी नहीं तो सारा दिन वक़्त कहाँ.

यूँ तो अम्मा जी का भरा पूरा परिवार था, तीन बेटियाँ और दो बेटे. बड़ी मेहनत से पाला था अम्माजी ने सब को,एक उम्र बीत गयी अब तो. बडकी ३५ साल की हो चली है और स्कूल में पढाती है,शादी नहीं की अब तक,कोई कारण तो है पर बताती नहीं .छुटकी २८ बरस की है और डाक्टरी की पदाई आगे पढ़ रही है .

बड़ा बेटा बड़का ३२ बरस का है और पांच बरस पहले उसने शादी की थी ,दीपाली उसके दफ्तर में काम करती थी .दोनों के दो प्यारे जुड़वाँ बच्चे है, ३ साल के सोहम और सोनम ,अम्माजी के पास रहते है.

छोटा बेटा छुटका २६ बरस पार कर चुका है और संगीत सीख रहा है, थोडा सरफिरा है पर दिल का अच्छा है . और हमारी मंझली, माँ की लाडली, उम्र, ३० साल, बी ऐ किया, अब अम्माजी के साथ घर संभाल रही है, जिद्द है, शादी करूंगी जीजी के बाद, नहीं तो कभी नहीं ....सब मिल जुल कर रहते थे, भगवान् की देन थी .

हम्म , तो यह दरवाज़े पर कौन है ,देखते है ....

"शांति शाहनी का घर यही है क्या ?" दरवाज़े पर खड़े बुजुर्ग आदमी ने पुछा .मंझली ने शक से उसकी तरफ देखा
शांति तो माँ का नाम है पर शाहनी क्या....हम्म ,अम्मा से पूछती हूँ .

"यही रुकिए, मैं पूछती हूँ" ...रुखाई से बोल कर वो अन्दर की तरफ चल पड़ी .

"अम्मा ..........." "क्या है मंझी,"अम्माजी बुदबुदायी ,६० साल तक आते आते कई बीमारियों ने उनके शरीर को घेर लिया था और दोपहर की नींद में विघ्न माने रात को जोडो के दर्द से बुरा हाल ..."क्यूँ चिल्ला रही है बिटिया, कौन कमबख्त है इस पहर ...."

"बुढाऊ है कोई अम्मा ,शांति शाहनी को पूछे है ...तुम्ही देखो न "मंझली उबासी लेती बोली .

"शांति शाहनी" .....अम्माजी का दिल धक् कर रह गया ...नहीं ,नहीं, इतने सालो बाद, यहाँ पर....कैसे ,क्यूँ....उधेड़ बुन के धीरे धीरे चलते ही दरवाज़े तक पहुंची .

"शांति शाहनी ....." अम्माजी फक्क सी रह गयी ....वही आँखे थी ...चेहरा साफ़ नहीं दीखता था, बड़े ही बाल ,सफ़ेद दाढी, फकीरों सा लिबास ,ढलकता शरीर पर आँखे वही...कुछ तलाशती आँखे ...तलाश वही थी आँखों में ....पर आज मेरे दरवाज़े कैसे आ पहुची...२७ साल बाद ....

संभाल लिया खुद को. अब इतना मुश्किल नहीं था ,तब था ,27 साल पहले, जब एक सुबह चिट्ठी लिख कर चले गए थे ...."निर्वाण की तलाश में जा रहा हूँ शांति शाहनी, तुम मजबूत हो ,घर बच्चे संभाल लोगी, मुझे खुद को तलाशना है ,मन् की शांति को ढूंढ़ना है ,आजादी में रहना है "
.
कितना रोई थी शांति ,अभी तो शाह जी को बता भी नहीं पायी थी की छुटका उसकी कोख में आ चुका था और वो चले गए ....व्यापार ,पैसे की कोई कमी नहीं थी ,बच्चे पल जाते...पर क्या पैसा, व्यापार सब कुछ था ....शांति ने कितनी राते रो कर , करवटे पलट कर काटी थी .

क्या वो समझती नहीं थी की बडकी शादी क्यूँ नहीं करती है .यौवन की देहलीज़ पर थी वो उस बखत ,सब समझती थी ,माँ की पीडा ,माँ के आंसू ....और इस्सी लिए अब शादी नहीं करती है.जब बोलो तो कहती है, "अम्मा ,शादी तो तुमने भी की थी ,क्या मिला ?"...तू मिली न लाडो," अम्मा प्यार से कहती...."तो मैं भी ले आऊंगी एक ,शादी की क्या ज़रुरत है "बडकी कहती... धत्त बडकी", कह के अम्मा चुप हो जाती .

बस, संभल गयी थी गिरहस्ती ...गाँव छोड़ कर १० साल पहले अम्मा शहर आ गयी परिवार के साथ ...सब ठीक था पर अचानक से अब ,क्यूँ वापस आये तुम शाह जी ,अम्मा मन ही मन बोल रही थी."क्यूँ..."

"शाहनी ,अन्दर नहीं बुलाओगी, बैठाओगी नहीं ....कितना ढूँढ ढूँढ कर यहाँ पंहुचा हूँ, गाँव क्यूँ छोड़ दिया ?"

अम्मा जी को होश आया ,"हाँ हाँ ,आओ शाह जी" कहते ही उन्हें बैठक तक ले गयी .

"छुटकी ने दरवाजा खोला था क्या ?" शाह जी ने पुछा .

मंझली थी, छुटकी हस्पताल में है ..."क्यूँ क्या हुआ," शाहजी ने घबरा कर पुछा .

"डाक्टर है, रोज़ जाती है .." अम्मा बोली.

"अच्छा, बड़ी ख़ुशी की बात है ..बताओ न ,मेरे बडकी ,बडके के बारे में भी ".शाह जी आतुर थे .

"मेरे ..." अम्माजी ने व्यंग से सोचा .

"और सब के बारे में बताओ न शांति ...बहुत मन है सबसे मिलने का ".शाह जी बोले

अम्माजी ने सब बताया. मंझली चाय नाश्ता ले आई थी .इशारों में पुछा, कौन है ये पर अम्मा ने उसे जाकर वापस सोने को बोल कर भेज दिया .

"बहुत ख़ुशी हुई सुन कर मेरे चारो बच्चे इतने लायक बन निकले है "

"चार नहीं पांच.....छुटका तुम्हारे जाने के आठ महीने बाद पैदा हुआ "

"ओह, तुमने बताया क्यूँ नहीं शाहनी "..

"तुम्हे मौका दिया था क्या शाहजी ...बस एक चिट्ठी रखे और चले गए,कभी सोचा क्या बीती होगी मुझ पर "

"मैं क्या करता ,मेरा मन् भटकता था ...और तस्सली थी की पैसे व्यापार की कमी नहीं है, तुम बच्चे पाल लोगी "

"पैसा व्यापार ...बस क्या यही चाहिए होता है एक औरत को ...सोचा कभी वो लम्बी रातें मैंने काटी होगी, पति के छोड़ जाने पर कितने लांछन सहे होंगे ,कैसे बढती लड़कियों को दुनिया के भेडियों से अकेले बचाया होगा, कैसे बढते लड़को को बाप बन भटकने से हटाया होगा ...हुह ,कहना आसान है, मन् भटकता था ...

"आजादी सब को प्यारी होती है शाह जी, मुझे भी है पर रिश्ते ज़िम्मेवारिया लाते है ,उनको निभाना पड़ता है, अपनी इच्छाओं ,अपनी भावनाओ को मार कर...पर आप क्या जाने,आप क्या जाने..." गला भर आया अम्माजी का .
सन्नाटा छा गया था जैसे बैठक में .बहुत देर कोई कुछ नहीं बोला.

फिर अम्मा जी ने खुद को संभाला ."कहिये अब कैसे आना हुआ ?"

"बस, तुम लोगो की याद ले आई "शाहजी बोले

"अच्छा,बहुत साल लग गए याद को आते आते .देख लिया ,जिंदा है ,मरे नहीं है. थोडा झटका तो लगा था ,पर संभल गए है .खैर आये है तो बच्चो से मिल कर शाम को जाईयेगा ".

"शाहनी ..." मुश्किल से गले से आवाज़ निकल पायी थी शाह जी की . "इतने बरस मैं ऋषिकेश में एक धरमशाला में रहा .वहां रह कर शराब की आदत बड़ गयी थी .कुछ दिन पहले डाक्टर ने बताया की मेरे गुर्दे बहुत खराब को चुके है, कहा शहर में रह कर ईलाज करवाओ .अब तुम कहती हो की छुटकी डाक्टर हो गयी है. यहाँ अपने घर में रहूँगा तो इलाज अच्छा हो जाएगा ."

" अपना घर ......."अम्माजी धीरे से बोली .कुछ देर चुप रही ,फिर बोली .

" शाहजी , हस्पताल में रहने का इन्तेजाम अच्छा है ,छुटकी को कह कर सारा इन्तेजाम कर दूँगी .पैसे की चिंता न करे, सारा इलाज में करवाऊंगी,जब तक ज़रुरत होगी तब तक ,पर घर, ये घर आपका नहीं है शाहजी ,उस दिन से नहीं है जिस दिन आप हमें छोड़ गए थे .ये घर मेरा और मेरे बच्चो का है, और वही रहेगा ..... आपका इलाज हो जाए तो कृपा करके वही चले जाइयेगा जहाँ से आये थे" .

"शाहनी ..." शाह जी की आवाज़ में गुस्सा था ...आने दो मेरे बच्चो को, फिर फैसला हुआ जाएगा .बहुत गुमान था अपने खून पर शाह जी को. "बाप हूँ आखिर उनका, मेरे पैसो पर पले हैं ".....

शाम हुई ....

सब घर आ गए ...मंझली ने चुप कर सब सुन लिया था और भाई बहनों को बताया.

सबसे पहले बड़का गया और पिताजी को प्रणाम किया.शाहजी ने चौडी छाती करके उसे गले लगाया, बहु को आर्शीवाद दिया और बच्चो से मिले .फिर छुटकी ,मंझली, छुटका मिलने गए. बडकी नहीं गयी, अम्माजी जानती थी बडकी नहीं गयी .

"देखा शाहनी ,मेरे बच्चे मुझे कितन आदर सम्मान देते है, वो मुझे कही नहीं जाने देंगे "शाह जी गर्व से बोले .

"पिताजी " बडके ने हाथ जोड़ कर बोला. :"हमने आपका आदर सम्मान किया क्यूंकि हमारी माँ ने हमें ये संस्कार दिए है. बाकी जहाँ तक आपके यहाँ रहने की बात है ,यह हमारी माँ का घर है और जो उनका फैसला, वो ही हम सब का फैसला है .हम आपक इलाज करवाएंगे और जीवन भर आपका खर्चा भार उठायेंगे पर इस घर में रहने का अधिकार आप खो चुके है".

शाह जी को ग्लानि का एहसास हुआ ...

छोटी उम्र में जिम्मेवारियों से मिली आजादी का असली मायना वृधावस्ता में आया पर एहसास होते बहुत देर हो चुकी थी ,उनका परिवार हो कर भी उनका नहीं था . एकाकी ज़िन्दगी उन्हें बुला रही थी .अब बहुत देर हो चुकी थी .

वक्त किसका हुआ बोलो ...


वक़्त किसका हुआ बोलो
वक्त ने साथ किसका दिया
न वो माझी का हो पाया
न होगा आते कल का .....
*
वक़्त की बंदगी को
तडीपार करा आया हूँ
वक्त के गुनाहों को सज़ा
इक्तियार करा आया हूँ ....
*
वक़्त ने रुक के कभी
कल न साथ दिया ,
कल के सब गिले-शिकवे
सब आंसू मिटा आया हूँ ....
*
अब .....
*
वक़्त से आगे बढ के
खुदी बुलंद कर आया हूँ
कल के कश-म-कश को
आज से बुझा आया हूँ .........
*
जियू में आज में ऐसे की
आते कल की परवाह नहीं
जो रहा नहीं कल उसकी
यहाँ कोई जगह ही नहीं ......
*
आज हो , आज है
आज ही हो बस
यही मनन मैं करूँ
यही कामना हो मेरी
और
मैं जी लूँ इक सदी
इस आज में ही ..........
*
इस आज में तू है
तू हो तू ही हो हमेशा ...
जिस कल में तू नहीं था
जिस कल में तू नहीं हो
ऐसे कल की हमें परवाह नहीं.....
*
बस आज है, आज हो
आज ही हो न प्रिय
इस आज में मैं जी लूं
इक सदी भर को
तेरी साँसों का सानिध्य लिए ....
*
और एक मन जोत लौ बन जग जाए हम .

रविवार, मई 10, 2009

ज़िन्दगी बहुत सस्ती है ,..

पल चिन्न है,छिन पल है
रोज़ सड़को पे बिकती है
पानी है यहाँ महंगा हुज़ूर
पर ज़िन्दगी बहुत सस्ती है ...

चौराहे के खूंटे पे सूखती
कड़ी तराशे सिसकती है
टूटी चूडियों के टुकड़े सहेज
कलाईया कफ़न से लिपटती है

वक़्त बहुत महंगा है हुज़ूर
पर ज़िन्दगी बहुत सस्ती है ....

अखबार की सुर्खियाँ शब् भर
लाल स्याही से चमकती है
सुबह कालिख हर्फो की
दर्द से कराह उठती है ...

"कल रात तेज़ दौड़ती गाडी
एक चिराग को बुझा उडी "

रुको, संभल के चलो
ऊँचे नभ में उड़ने वालो
ज़िन्दगी तुम्हारी भी कभी
सडको पे निकलती है ....

क्या अब भी जीने की कीमत
तुम को कम दिखती है ???

शनिवार, अप्रैल 11, 2009

यू टर्न

हर क़दम संभल के रखो
हर हरफ़ वज़न कर कहो

लाइफ में कोई यू- टर्न नही है .....

हर रिश्ता खुल के जियो
शक को जगह कोई न दो
जो कहना है आज कहो
कल की कोई शाख नही है ........

नाराज़ हो कर तुम
दायरे समेट तो लो
पर दिल में दरिया रखो
हमदम खुदा तो नही है ......

तोड़ने से पहले कोई दिल
आयने में झाँक तो लो
जो रहता है उस पार वो
इतना भी पाक नही है ...

चटक जाए रिश्ता कोई
फिर से जुड़ सकता है
झिर्रिया फिर भी दिखती है
गांठो में साख नही है ......

हर कदम संभल के रखो
हर हरफ वजन कर कहो
हर नाता प्रेम से बाँचो
की रिश्तो में आंच नही है ....

पल भर में बुझते है
सदियों में फ़ना होते है

रिश्ते बड़े नाज़ुक होते हैं .....

***********************


शुक्रवार, मार्च 20, 2009

काली.....

काली महोल्ले में जब नई- नई आई थी तो गली के बाकी कुत्तो ने उसका जीना हराम कर दिया था। कुकुर जात की प्रवत्ति ही ऐसी है कि तह की सीमा किसी को आसानी से लांघने नही देते। सब बहुत परेशान थे, कहाँ से आ गया ये काला कुत्ता , अलग अलग लोगो की अलग अलग राय.

काली गर्भवती थी, सारा दिन यहाँ वहां छुपती फिरती और रात को किसी बड़ी गाड़ी के नीचे आसरा लेती। कई रातो तक कुत्तो की आवाजे आती रही,उसको भगाने की कोशिश करते हुए पर लगता है वो हार गए...आवाजे कुछ रातो के बाद बंद हो गई और काली गली में आती जाती नज़र आने लगी ।महोल्ले में भी लोगो को उसकी आदत पड़ गई .

कुछ दिन बाद देखा, एक बड़ी गाड़ी के पीछे काली ने काले सफ़ेद खूबसूरत बच्चे दिए है. दो दिन बाद पता चला की तीन बच्चे उस बड़ी गाड़ी के नीचे आ कर मर गए जिस के नीचे जन्मे थे। कमिटी वाले आ कर उन्हें ले गए.


बहुत दिन तक काली अपने तीन बच्चो के सात नज़र आती रही ....कुछ दिन में दो बच्चे और दौड़ती गाड़ी के नीचे आ गए ...बस अब एक भूरा बच्चा रह गया था ...


पड़ोस की जुड़वाँ बहनों हनी और मणि ने प्यार से उसका नाम रिमझिम रखा । दोनों प्यार से सुबह शाम उसको दूध बिस्किट देती और काली वही उसके आस पास घूमती रहती ,पूँछ हिलाती, लाड दिखाती .....शाम को गली के छोटे बड़े बच्चे रिमझिम के पीछे भागते और काली के आस पास खेलते.....


परसों रात घर लौटते ही अपनी गाड़ी के आगे सड़क के बीचे में बैठी उदास काली को देखा....मूक बैठी काली आंसू आँखों में भरे सर झुका कर सदाके बीच में बैठी थी ...दिल धक् कर रह गया ...रिमझिम....देखा, मांस और लोथ का टुकडा सड़क के किनारे पड़ा था...सुबह तक काली वही उदास पड़ी रही....

अगले दिन , काली यहाँ से वहां दौड़ती फिरती रही,उसे समझ नही आ रहा था वो क्या करे ......वो गाड़ी जिसने उसे महोल्ले में आश्रय दिया था , उसकी आखिरी उम्मीद को भी कुचल कर चली गई थी ....



कल शाम से उसकी उदास आँखें दिल को विचलित की हुई है...आंसू है की आँख में भर आते है...माँ हूँ, माँ का दर्द समझ सकती हूँ, वो जानवर है, न गोद भराई हुई, न जापा कटा ,अकेले लड़ती रही बच्चो के लिए, और अब...एक भी बच्चा जीवित नही रहा ...... न जाने क्या करेगी काली ......पूरा महोल्ला उदास है .......काली के लिए.....क्या करें.....





रविवार, मार्च 01, 2009

आधे ....अधूरे ...

टुकडो में छुआ है तुमको
कभी सुबह की ओस बन कर
कभी लबो पे शोख बन कर ...

बन के मदमाती हवा
गुज़रा हूँ गेसुओं से तेरी
और बन के परवाना कभी,
मिला हूँ शमाओं सें कई....

टुकडो में जिया है अब तक
आधे अधूरे ख्वाब बुन कर.....
ले के दिल में आस तेरी
अब से तब तलक ठन कर

जो पा सकू तुझे कभी
तो गुज़र जायेगी इक सदी
कभी ग़मों का शाख बन कर
कभी खुशी का साथ बन कर

न मिल सको गर तुम ..
तो कट जायेगी ज़िन्दगी
कभी फलक की राख बन कर
कभी सेहर की ख़ाक बन कर .....

.....और में हवाओं में घुल कर
लिपट जाऊँगा गेसुओं से तेरी ......

शुक्रवार, फ़रवरी 27, 2009

आदतें भी अजीब होती हैं.**

आदतें भी अजीब होती हैं.....

सिगरट के धुए की तरह
साँसों में बस गए हो तुम
निकोटीन की डोस बन कर.....

दिल चाहता है कि
यह कमबख्त धुआ
ज़मी से उड़ कर-
बस जाए आँखों में तेरी
दो बूँद आंसू बन कर .....

और जब भी नम पलके रो कर
आँखों से खफा हो जाए ,
नादान आंसू ढलक के
उतर जाए दिल में तेरे......
आगोश में साँसों को लिए
बस जाए धड़कन की जगह
और........
मेरे होने की मीठी चुभन
तेरे दिल में टीस दे गुज़र जाए
मेरे न होने का सबब लिए हुए ....

क्यूँ न मैं फिर से जी लूँ एक पल
जैसे जिया करती थी सदियों पहले ...
- एक पल भी एक सदी से कम तो नही -

आदतें भी अजीब होती हैं...
जीने नही देती जीते - जीते
और मर के मरने भी नही देती ...

** शीर्षक के लिए आभार मेरे मित्र "मस्तो "को , उन्हें यहाँ पढ़े :
ह्त्त्प://मस्तो९६.ब्लागस्पाट.कॉम/२००७/०८/ब्लॉग-पोस्ट_१४.हटमल

बुधवार, फ़रवरी 25, 2009

एक बाल कविता


राजू से शेखर मिले,

कर कर लम्बे हाथ.


कर कर लम्बे हाथ मिले तो चमकी किस्मत

और दूर हुई उनके जीवन में फैली खट - पट.


दूर हुई खट - पट तो उनका मन मुस्काया,

और खेल - कूद का मौसम फिर से वापिस आया.


इसी तरह 'गर सब जन मिलते,

कर कर लम्बे हाथ;

ह़ंसी खुशी का राज हो दिल में,

जग में हो उल्लास

शुक्रवार, फ़रवरी 20, 2009

कारपोरेट ज़िन्दगी

ज़िन्दगी के मायने कुछ धुंधलाने लगे है
"फार्मोलों "से आगे "बिज़नस सूट "आने लगे है

दफ्तरों से निकल बाहर पंहुचा है व्यापार
"गोल्फ कोर्सों " पे अब शामियाने सजे है

हाई क्लास के "वाईनींग डायनिंग "करे हैं
बेकार "मिडनाईट आयल " जलाने लगे है

फलसफे नए रोज़ आने लगे है
हो सच वो या सौदा भुनाने चले है

खुदाई के बन्दे वहां तक है पहुंचे
जहा रोज़ खुदा नए नज़र आने लगे है

मायने ज़िन्दगी के धुंधलाने लगे है
मायने ज़िन्दगी के भुलाने लगे है ......
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वाह वाही की ज़िन्दगी शाही ही सही
आइना दिखा सके सच्चा साथी वही

क्यूँ हो गया हूँ फिर मैं भीड़ में तन्हा .....

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शनिवार, जनवरी 24, 2009

त्रिवेणी

शीरा जुबान पे खंजर कमान में
मुखौटे हसीं पर चेहरे बईमान से

केकड़े है रेत के चलना संभाल के


गुरुवार, जनवरी 01, 2009

नव वर्ष है

नव वर्ष है..... नव हर्ष हो
एक नई सुबह का स्पर्श हो ....

नव कामना का एहसास हो
नव कल्पना का वास हो
नव यौवन का उल्लास हो
नव कोपल का आभास हो
नव वर्ष को धारण करे
नव किरणों का स्वागत करे ....
नव वर्ष है ...नव हर्ष हो....

नव युग बने नव पुरु चुने
जो खो गया उसे बिदा करे
नव मीत का स्वागत करे ....

है प्राथना बस यह प्रभु
नव वर्ष शान्ति का वर्ष हो ...
सद्भावना का वास हो
सच्चाई का भी साथ हो
मनोविकारों से नाता मिटे
मिलाप में जीवन कटे
बुराई का विसर्जन करे
नफरत का व्यक्तित्व शून्य करे

हो दिलो में जीने देने की आस
नव निर्माण का हो अथक प्रयास
नव कृति की नींव धरे
नव वर्ष का आह्वान हो
नव वर्ष है नव हर्ष हो
मंगलमय आपका ये वर्ष हो.....