शुक्रवार, मार्च 20, 2009

काली.....

काली महोल्ले में जब नई- नई आई थी तो गली के बाकी कुत्तो ने उसका जीना हराम कर दिया था। कुकुर जात की प्रवत्ति ही ऐसी है कि तह की सीमा किसी को आसानी से लांघने नही देते। सब बहुत परेशान थे, कहाँ से आ गया ये काला कुत्ता , अलग अलग लोगो की अलग अलग राय.

काली गर्भवती थी, सारा दिन यहाँ वहां छुपती फिरती और रात को किसी बड़ी गाड़ी के नीचे आसरा लेती। कई रातो तक कुत्तो की आवाजे आती रही,उसको भगाने की कोशिश करते हुए पर लगता है वो हार गए...आवाजे कुछ रातो के बाद बंद हो गई और काली गली में आती जाती नज़र आने लगी ।महोल्ले में भी लोगो को उसकी आदत पड़ गई .

कुछ दिन बाद देखा, एक बड़ी गाड़ी के पीछे काली ने काले सफ़ेद खूबसूरत बच्चे दिए है. दो दिन बाद पता चला की तीन बच्चे उस बड़ी गाड़ी के नीचे आ कर मर गए जिस के नीचे जन्मे थे। कमिटी वाले आ कर उन्हें ले गए.


बहुत दिन तक काली अपने तीन बच्चो के सात नज़र आती रही ....कुछ दिन में दो बच्चे और दौड़ती गाड़ी के नीचे आ गए ...बस अब एक भूरा बच्चा रह गया था ...


पड़ोस की जुड़वाँ बहनों हनी और मणि ने प्यार से उसका नाम रिमझिम रखा । दोनों प्यार से सुबह शाम उसको दूध बिस्किट देती और काली वही उसके आस पास घूमती रहती ,पूँछ हिलाती, लाड दिखाती .....शाम को गली के छोटे बड़े बच्चे रिमझिम के पीछे भागते और काली के आस पास खेलते.....


परसों रात घर लौटते ही अपनी गाड़ी के आगे सड़क के बीचे में बैठी उदास काली को देखा....मूक बैठी काली आंसू आँखों में भरे सर झुका कर सदाके बीच में बैठी थी ...दिल धक् कर रह गया ...रिमझिम....देखा, मांस और लोथ का टुकडा सड़क के किनारे पड़ा था...सुबह तक काली वही उदास पड़ी रही....

अगले दिन , काली यहाँ से वहां दौड़ती फिरती रही,उसे समझ नही आ रहा था वो क्या करे ......वो गाड़ी जिसने उसे महोल्ले में आश्रय दिया था , उसकी आखिरी उम्मीद को भी कुचल कर चली गई थी ....



कल शाम से उसकी उदास आँखें दिल को विचलित की हुई है...आंसू है की आँख में भर आते है...माँ हूँ, माँ का दर्द समझ सकती हूँ, वो जानवर है, न गोद भराई हुई, न जापा कटा ,अकेले लड़ती रही बच्चो के लिए, और अब...एक भी बच्चा जीवित नही रहा ...... न जाने क्या करेगी काली ......पूरा महोल्ला उदास है .......काली के लिए.....क्या करें.....





रविवार, मार्च 01, 2009

आधे ....अधूरे ...

टुकडो में छुआ है तुमको
कभी सुबह की ओस बन कर
कभी लबो पे शोख बन कर ...

बन के मदमाती हवा
गुज़रा हूँ गेसुओं से तेरी
और बन के परवाना कभी,
मिला हूँ शमाओं सें कई....

टुकडो में जिया है अब तक
आधे अधूरे ख्वाब बुन कर.....
ले के दिल में आस तेरी
अब से तब तलक ठन कर

जो पा सकू तुझे कभी
तो गुज़र जायेगी इक सदी
कभी ग़मों का शाख बन कर
कभी खुशी का साथ बन कर

न मिल सको गर तुम ..
तो कट जायेगी ज़िन्दगी
कभी फलक की राख बन कर
कभी सेहर की ख़ाक बन कर .....

.....और में हवाओं में घुल कर
लिपट जाऊँगा गेसुओं से तेरी ......