शुक्रवार, अगस्त 15, 2008

तुम....

तुम नही हो
सन्नाटा है बस
और है परछाइयां
उदासी की ...

वीरान दीवारों पर
यादो के साए
बसते हैं
तनहा -तनहा से .....

तुम आओ तो
अमावस में भी
दूज का चाँद
उग आएगा......

तुम आओ तो
हरियाली से
बूटा बूटा
खिल जायेगा ...

तुम आओ तो
मन आँगन की
कलि फूल
बन जायेगी ......
बुझती साँसों की
कड़ी टूटती कही
कही थम जायेगी .....

तुम आओ तो
मौत से जुड़ता
रिश्ता टूट जायेगा ....

आने से बस एक तुम्हारे
उस बूढी माँ का बढता कैंसर
तन मन को कम सताएगा
आने से बस एक तुम्हारे
शायद काल कही रुक जायेगा ...

माँ कहती है
मेरा बेटा
मेरे जीवन की
हर खोयी खुशी लौटाएगा ......