रविवार, मई 10, 2009

ज़िन्दगी बहुत सस्ती है ,..

पल चिन्न है,छिन पल है
रोज़ सड़को पे बिकती है
पानी है यहाँ महंगा हुज़ूर
पर ज़िन्दगी बहुत सस्ती है ...

चौराहे के खूंटे पे सूखती
कड़ी तराशे सिसकती है
टूटी चूडियों के टुकड़े सहेज
कलाईया कफ़न से लिपटती है

वक़्त बहुत महंगा है हुज़ूर
पर ज़िन्दगी बहुत सस्ती है ....

अखबार की सुर्खियाँ शब् भर
लाल स्याही से चमकती है
सुबह कालिख हर्फो की
दर्द से कराह उठती है ...

"कल रात तेज़ दौड़ती गाडी
एक चिराग को बुझा उडी "

रुको, संभल के चलो
ऊँचे नभ में उड़ने वालो
ज़िन्दगी तुम्हारी भी कभी
सडको पे निकलती है ....

क्या अब भी जीने की कीमत
तुम को कम दिखती है ???