सोमवार, जून 22, 2009

ग्लानि ....

"कौन है ?!! " मंजली ने झल्लाते ही दरवाज़ा खोला.

दोपहर के ३ बज रहे थे. न अम्मा जी को इस वक़्त परेशान होना पसंद था ,न मंझली को. सारा दिन काम करने के बाद ये दो घंठे दोपहर में आंख लगने की फुर्सत मिलती थी नहीं तो सारा दिन वक़्त कहाँ.

यूँ तो अम्मा जी का भरा पूरा परिवार था, तीन बेटियाँ और दो बेटे. बड़ी मेहनत से पाला था अम्माजी ने सब को,एक उम्र बीत गयी अब तो. बडकी ३५ साल की हो चली है और स्कूल में पढाती है,शादी नहीं की अब तक,कोई कारण तो है पर बताती नहीं .छुटकी २८ बरस की है और डाक्टरी की पदाई आगे पढ़ रही है .

बड़ा बेटा बड़का ३२ बरस का है और पांच बरस पहले उसने शादी की थी ,दीपाली उसके दफ्तर में काम करती थी .दोनों के दो प्यारे जुड़वाँ बच्चे है, ३ साल के सोहम और सोनम ,अम्माजी के पास रहते है.

छोटा बेटा छुटका २६ बरस पार कर चुका है और संगीत सीख रहा है, थोडा सरफिरा है पर दिल का अच्छा है . और हमारी मंझली, माँ की लाडली, उम्र, ३० साल, बी ऐ किया, अब अम्माजी के साथ घर संभाल रही है, जिद्द है, शादी करूंगी जीजी के बाद, नहीं तो कभी नहीं ....सब मिल जुल कर रहते थे, भगवान् की देन थी .

हम्म , तो यह दरवाज़े पर कौन है ,देखते है ....

"शांति शाहनी का घर यही है क्या ?" दरवाज़े पर खड़े बुजुर्ग आदमी ने पुछा .मंझली ने शक से उसकी तरफ देखा
शांति तो माँ का नाम है पर शाहनी क्या....हम्म ,अम्मा से पूछती हूँ .

"यही रुकिए, मैं पूछती हूँ" ...रुखाई से बोल कर वो अन्दर की तरफ चल पड़ी .

"अम्मा ..........." "क्या है मंझी,"अम्माजी बुदबुदायी ,६० साल तक आते आते कई बीमारियों ने उनके शरीर को घेर लिया था और दोपहर की नींद में विघ्न माने रात को जोडो के दर्द से बुरा हाल ..."क्यूँ चिल्ला रही है बिटिया, कौन कमबख्त है इस पहर ...."

"बुढाऊ है कोई अम्मा ,शांति शाहनी को पूछे है ...तुम्ही देखो न "मंझली उबासी लेती बोली .

"शांति शाहनी" .....अम्माजी का दिल धक् कर रह गया ...नहीं ,नहीं, इतने सालो बाद, यहाँ पर....कैसे ,क्यूँ....उधेड़ बुन के धीरे धीरे चलते ही दरवाज़े तक पहुंची .

"शांति शाहनी ....." अम्माजी फक्क सी रह गयी ....वही आँखे थी ...चेहरा साफ़ नहीं दीखता था, बड़े ही बाल ,सफ़ेद दाढी, फकीरों सा लिबास ,ढलकता शरीर पर आँखे वही...कुछ तलाशती आँखे ...तलाश वही थी आँखों में ....पर आज मेरे दरवाज़े कैसे आ पहुची...२७ साल बाद ....

संभाल लिया खुद को. अब इतना मुश्किल नहीं था ,तब था ,27 साल पहले, जब एक सुबह चिट्ठी लिख कर चले गए थे ...."निर्वाण की तलाश में जा रहा हूँ शांति शाहनी, तुम मजबूत हो ,घर बच्चे संभाल लोगी, मुझे खुद को तलाशना है ,मन् की शांति को ढूंढ़ना है ,आजादी में रहना है "
.
कितना रोई थी शांति ,अभी तो शाह जी को बता भी नहीं पायी थी की छुटका उसकी कोख में आ चुका था और वो चले गए ....व्यापार ,पैसे की कोई कमी नहीं थी ,बच्चे पल जाते...पर क्या पैसा, व्यापार सब कुछ था ....शांति ने कितनी राते रो कर , करवटे पलट कर काटी थी .

क्या वो समझती नहीं थी की बडकी शादी क्यूँ नहीं करती है .यौवन की देहलीज़ पर थी वो उस बखत ,सब समझती थी ,माँ की पीडा ,माँ के आंसू ....और इस्सी लिए अब शादी नहीं करती है.जब बोलो तो कहती है, "अम्मा ,शादी तो तुमने भी की थी ,क्या मिला ?"...तू मिली न लाडो," अम्मा प्यार से कहती...."तो मैं भी ले आऊंगी एक ,शादी की क्या ज़रुरत है "बडकी कहती... धत्त बडकी", कह के अम्मा चुप हो जाती .

बस, संभल गयी थी गिरहस्ती ...गाँव छोड़ कर १० साल पहले अम्मा शहर आ गयी परिवार के साथ ...सब ठीक था पर अचानक से अब ,क्यूँ वापस आये तुम शाह जी ,अम्मा मन ही मन बोल रही थी."क्यूँ..."

"शाहनी ,अन्दर नहीं बुलाओगी, बैठाओगी नहीं ....कितना ढूँढ ढूँढ कर यहाँ पंहुचा हूँ, गाँव क्यूँ छोड़ दिया ?"

अम्मा जी को होश आया ,"हाँ हाँ ,आओ शाह जी" कहते ही उन्हें बैठक तक ले गयी .

"छुटकी ने दरवाजा खोला था क्या ?" शाह जी ने पुछा .

मंझली थी, छुटकी हस्पताल में है ..."क्यूँ क्या हुआ," शाहजी ने घबरा कर पुछा .

"डाक्टर है, रोज़ जाती है .." अम्मा बोली.

"अच्छा, बड़ी ख़ुशी की बात है ..बताओ न ,मेरे बडकी ,बडके के बारे में भी ".शाह जी आतुर थे .

"मेरे ..." अम्माजी ने व्यंग से सोचा .

"और सब के बारे में बताओ न शांति ...बहुत मन है सबसे मिलने का ".शाह जी बोले

अम्माजी ने सब बताया. मंझली चाय नाश्ता ले आई थी .इशारों में पुछा, कौन है ये पर अम्मा ने उसे जाकर वापस सोने को बोल कर भेज दिया .

"बहुत ख़ुशी हुई सुन कर मेरे चारो बच्चे इतने लायक बन निकले है "

"चार नहीं पांच.....छुटका तुम्हारे जाने के आठ महीने बाद पैदा हुआ "

"ओह, तुमने बताया क्यूँ नहीं शाहनी "..

"तुम्हे मौका दिया था क्या शाहजी ...बस एक चिट्ठी रखे और चले गए,कभी सोचा क्या बीती होगी मुझ पर "

"मैं क्या करता ,मेरा मन् भटकता था ...और तस्सली थी की पैसे व्यापार की कमी नहीं है, तुम बच्चे पाल लोगी "

"पैसा व्यापार ...बस क्या यही चाहिए होता है एक औरत को ...सोचा कभी वो लम्बी रातें मैंने काटी होगी, पति के छोड़ जाने पर कितने लांछन सहे होंगे ,कैसे बढती लड़कियों को दुनिया के भेडियों से अकेले बचाया होगा, कैसे बढते लड़को को बाप बन भटकने से हटाया होगा ...हुह ,कहना आसान है, मन् भटकता था ...

"आजादी सब को प्यारी होती है शाह जी, मुझे भी है पर रिश्ते ज़िम्मेवारिया लाते है ,उनको निभाना पड़ता है, अपनी इच्छाओं ,अपनी भावनाओ को मार कर...पर आप क्या जाने,आप क्या जाने..." गला भर आया अम्माजी का .
सन्नाटा छा गया था जैसे बैठक में .बहुत देर कोई कुछ नहीं बोला.

फिर अम्मा जी ने खुद को संभाला ."कहिये अब कैसे आना हुआ ?"

"बस, तुम लोगो की याद ले आई "शाहजी बोले

"अच्छा,बहुत साल लग गए याद को आते आते .देख लिया ,जिंदा है ,मरे नहीं है. थोडा झटका तो लगा था ,पर संभल गए है .खैर आये है तो बच्चो से मिल कर शाम को जाईयेगा ".

"शाहनी ..." मुश्किल से गले से आवाज़ निकल पायी थी शाह जी की . "इतने बरस मैं ऋषिकेश में एक धरमशाला में रहा .वहां रह कर शराब की आदत बड़ गयी थी .कुछ दिन पहले डाक्टर ने बताया की मेरे गुर्दे बहुत खराब को चुके है, कहा शहर में रह कर ईलाज करवाओ .अब तुम कहती हो की छुटकी डाक्टर हो गयी है. यहाँ अपने घर में रहूँगा तो इलाज अच्छा हो जाएगा ."

" अपना घर ......."अम्माजी धीरे से बोली .कुछ देर चुप रही ,फिर बोली .

" शाहजी , हस्पताल में रहने का इन्तेजाम अच्छा है ,छुटकी को कह कर सारा इन्तेजाम कर दूँगी .पैसे की चिंता न करे, सारा इलाज में करवाऊंगी,जब तक ज़रुरत होगी तब तक ,पर घर, ये घर आपका नहीं है शाहजी ,उस दिन से नहीं है जिस दिन आप हमें छोड़ गए थे .ये घर मेरा और मेरे बच्चो का है, और वही रहेगा ..... आपका इलाज हो जाए तो कृपा करके वही चले जाइयेगा जहाँ से आये थे" .

"शाहनी ..." शाह जी की आवाज़ में गुस्सा था ...आने दो मेरे बच्चो को, फिर फैसला हुआ जाएगा .बहुत गुमान था अपने खून पर शाह जी को. "बाप हूँ आखिर उनका, मेरे पैसो पर पले हैं ".....

शाम हुई ....

सब घर आ गए ...मंझली ने चुप कर सब सुन लिया था और भाई बहनों को बताया.

सबसे पहले बड़का गया और पिताजी को प्रणाम किया.शाहजी ने चौडी छाती करके उसे गले लगाया, बहु को आर्शीवाद दिया और बच्चो से मिले .फिर छुटकी ,मंझली, छुटका मिलने गए. बडकी नहीं गयी, अम्माजी जानती थी बडकी नहीं गयी .

"देखा शाहनी ,मेरे बच्चे मुझे कितन आदर सम्मान देते है, वो मुझे कही नहीं जाने देंगे "शाह जी गर्व से बोले .

"पिताजी " बडके ने हाथ जोड़ कर बोला. :"हमने आपका आदर सम्मान किया क्यूंकि हमारी माँ ने हमें ये संस्कार दिए है. बाकी जहाँ तक आपके यहाँ रहने की बात है ,यह हमारी माँ का घर है और जो उनका फैसला, वो ही हम सब का फैसला है .हम आपक इलाज करवाएंगे और जीवन भर आपका खर्चा भार उठायेंगे पर इस घर में रहने का अधिकार आप खो चुके है".

शाह जी को ग्लानि का एहसास हुआ ...

छोटी उम्र में जिम्मेवारियों से मिली आजादी का असली मायना वृधावस्ता में आया पर एहसास होते बहुत देर हो चुकी थी ,उनका परिवार हो कर भी उनका नहीं था . एकाकी ज़िन्दगी उन्हें बुला रही थी .अब बहुत देर हो चुकी थी .

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