रविवार, मार्च 01, 2009

आधे ....अधूरे ...

टुकडो में छुआ है तुमको
कभी सुबह की ओस बन कर
कभी लबो पे शोख बन कर ...

बन के मदमाती हवा
गुज़रा हूँ गेसुओं से तेरी
और बन के परवाना कभी,
मिला हूँ शमाओं सें कई....

टुकडो में जिया है अब तक
आधे अधूरे ख्वाब बुन कर.....
ले के दिल में आस तेरी
अब से तब तलक ठन कर

जो पा सकू तुझे कभी
तो गुज़र जायेगी इक सदी
कभी ग़मों का शाख बन कर
कभी खुशी का साथ बन कर

न मिल सको गर तुम ..
तो कट जायेगी ज़िन्दगी
कभी फलक की राख बन कर
कभी सेहर की ख़ाक बन कर .....

.....और में हवाओं में घुल कर
लिपट जाऊँगा गेसुओं से तेरी ......

17 टिप्‍पणियां:

  1. टुकडो में जिया है अब तक
    आधे अधूरे ख्वाब बुन कर.....
    ले के दिल में आस तेरी
    अब से तब तलक ठन कर
    dil ko chune waali rachna hai

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  2. और में हवाओं में घुल कर
    लिपट जाऊँगा गेसुओं से तेरी
    ....भाव-विह्वला पंक्तियां.

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  3. tukdon mein chua hai tumko..........waah kya likh diya aapne..........bahut gahre bhav har pankti mein.

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  4. टुकडो में जिया है अब तक
    आधे अधूरे ख्वाब बुन कर.....
    ले के दिल में आस तेरी
    अब से तब तलक ठन कर


    बेहतरीन लगी यह पंक्तियाँ सुन्दर अच्छा लिखा है आपने

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  5. मेरे आधे अधूरे शब्दों को कुछ नए मायने देने के लिए आप सब का धन्यवाद .

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  6. khubsurat kalpanaon ka ashcharya melbandhan...likhte rahie di...inspiration milti hai hum e...

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  7. टुकडो में जिया है अब तक
    आधे अधूरे ख्वाब बुन कर.....
    Very nice.
    Keep writing Gayatri...

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  8. main hwaao me gul kar lipt jaunga tere gesun se....very toching...yeh adhe adure shabad puree baat kah jaate hai

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  9. टुकडो में जिया है अब तक
    आधे अधूरे ख्वाब बुन कर.....
    kya baat hai...

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  10. गायत्री जी,

    खूबसूरत अहसासों को महसूस किया जा सकता है, एक अच्छी रचना।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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