ज़िन्दगी के मायने कुछ धुंधलाने लगे है
"फार्मोलों "से आगे "बिज़नस सूट "आने लगे है
दफ्तरों से निकल बाहर पंहुचा है व्यापार
"गोल्फ कोर्सों " पे अब शामियाने सजे है
हाई क्लास के "वाईनींग डायनिंग "करे हैं
बेकार "मिडनाईट आयल " जलाने लगे है
फलसफे नए रोज़ आने लगे है
हो सच वो या सौदा भुनाने चले है
खुदाई के बन्दे वहां तक है पहुंचे
जहा रोज़ खुदा नए नज़र आने लगे है
मायने ज़िन्दगी के धुंधलाने लगे है
मायने ज़िन्दगी के भुलाने लगे है ......
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वाह वाही की ज़िन्दगी शाही ही सही
आइना दिखा सके सच्चा साथी वही
क्यूँ हो गया हूँ फिर मैं भीड़ में तन्हा .....
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गायत्री जी,बहुत बढिया व सामयिक रचना लिखी है।बधाई।
जवाब देंहटाएंखुदाई के बन्दे वहां तक है पहुंचे
जहा रोज़ खुदा नए नज़र आने लगे है
मायने ज़िन्दगी के धुंधलाने लगे है
मायने ज़िन्दगी के भुलाने लगे है .....
लगता है पेज थ्री पढ़ रहा हू.. बहुत सही लिखा है..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया व सामयिक रचना .बधाई.
जवाब देंहटाएंदफ्तरों से निकल बाहर पंहुचा है व्यापार
जवाब देंहटाएं"गोल्फ कोर्सों " पे अब शामियाने सजे है
हाई क्लास के "वाईनींग डायनिंग "करे हैं
बेकार "मिडनाईट आयल " जलाने लगे है
बहुत बढिया व सामयिक रचना
good wordings
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गुलाबी कोंपलें
सरकारी नौकरियाँ
सामयिक रचना समझने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंसमयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : चिठ्ठी लेकर आया हूँ कोई देख तो नही रहा हैबहुत अच्छा जी
जवाब देंहटाएंआपके चिठ्ठे की चर्चा चिठ्ठीचर्चा "समयचक्र" में
महेन्द्र मिश्र
gayatriji,aapke blog par pahli baar aaya,corporate life par aapke lafzon ko parha,achha laga,ab aapki her kavita parhane ki koshish karoonga.kabhi mere blog "meri awaaz suno" par bhi aayen.
जवाब देंहटाएंलाजबाब रचना गायत्री जी अपपने बड़ी कुशलता से व्यंग की छु री चलाई है
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
http://manoria.blogspot.com
A real piece with a touch of satire in it.
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