शीरा जुबान पे खंजर कमान में मुखौटे हसीं पर चेहरे बईमान से
केकड़े है रेत के चलना संभाल के
वाह जी वाह ये आखिर की लाईन में केकडे हैं रेत में होना चाहिए था क्या या के ही पढा जाए जरा इस बात से प्लीज अवगत करा देना क्योंकि इस के और में के चक्कर में ऐसा लगा कि मेवों से मिश्रित खीर में कुछ थोडा मीठा कम लगा
मोहन जी, त्रिवेणी समझने के लिए शुक्रिया। पहला विचार हमारा भी "में "का था , शेर होता तो में चलता ,पर ये है त्रिवेणी। सरस्वती का रुख्ह गंगा और जमना से अलग होना चाहिए । इस्सलिये केकड़े है रेत के का इस्तेमाल है। जिस तरह से आप खूबसूरत मुखतो के पीछे बदसूरत चेहरों की बात करते है , मीठी जुबान वालो को कातिल करार करते हैं, वैसे ही रेत पर आप चलते हीपैरो को ठंडक देने के लिए । पर अगर रेत ही कांटे कि हैं(केकड़े ) तो पाऊँ का क्या हाल होगा।
मनवा बेईमान है....छिपके भी उनियान है... इन्द्रियाँ हमारी ये चोरों की खानदान है... जख्म छिपे कैसे कि फटी हुई बनियान है !! .....सॉरी हमारी तो चतुर्वेनी है ये....!!बुरा ना माने गणतंत्र दिवस है......!!
शब्द है किलाखो की संख्यामेदिलो दीमागपर हावी हुए जाते है ....शब्दो को स्याही सेशक्ल दो तो किस्से ,कहानिया ,कविताएबन उभरती हैं . समय से हमेशा प्रतिस्पर्धा रहती है मेरी . कामकाजी महिला ,ग्रहणी , माँ, पत्नी ,बेटी ,बहू हूँ और इन सब के बाद एक लेखिका..... शब्दो की दोस्त ,हमदर्द .... यहाँ है -कुछ मेरी कही -सुनी ,कुछ जग देखी का विवरण ...आप के समक्ष..आप की समीक्षा के लिए .
बहुत गहरी कड़ियाँ हैं इस त्रिवेणी में
जवाब देंहटाएं---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
शीरा जुबान पे खंजर कमान में
जवाब देंहटाएंमुखौटे हसीं पर चेहरे बईमान से
केकड़े है रेत के चलना संभाल के
वाह जी वाह ये आखिर की लाईन में केकडे हैं रेत में होना चाहिए था क्या या के ही पढा जाए जरा इस बात से प्लीज अवगत करा देना क्योंकि इस के और में के चक्कर में ऐसा लगा कि मेवों से मिश्रित खीर में कुछ थोडा मीठा कम लगा
मोहन जी, त्रिवेणी समझने के लिए शुक्रिया। पहला विचार हमारा भी "में "का था , शेर होता तो में चलता ,पर ये है त्रिवेणी। सरस्वती का रुख्ह गंगा और जमना से अलग होना चाहिए । इस्सलिये केकड़े है रेत के का इस्तेमाल है। जिस तरह से आप खूबसूरत मुखतो के पीछे बदसूरत चेहरों की बात करते है , मीठी जुबान वालो को कातिल करार करते हैं, वैसे ही रेत पर आप चलते हीपैरो को ठंडक देने के लिए । पर अगर रेत ही कांटे कि हैं(केकड़े ) तो पाऊँ का क्या हाल होगा।
जवाब देंहटाएंआशा हे, खीर में चाशनी थोडी घुल गई होगी .
बेहतरीन रही त्रिवेणी..बहुत गहरी उतरी.
जवाब देंहटाएंवाह, क्या बात है। ज़िंदगी की बदकिस्मत सच्चाई यही है। बहुत सुंदरता से केवल दो पंक्तियों में व्यक्त कर दी आप ने।
जवाब देंहटाएंबड़ी गहरी त्रिवेणी है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे।
जवाब देंहटाएंकभी गंगा, जमुना, सरस्वती को एक लहजे में कह कर देखिए शायद त्रिवेणी में और भी ख़ूबसूरत धाराएँ बह चलें।
जवाब देंहटाएंमनवा बेईमान है....छिपके भी उनियान है...
जवाब देंहटाएंइन्द्रियाँ हमारी ये चोरों की खानदान है...
जख्म छिपे कैसे कि फटी हुई बनियान है !!
.....सॉरी हमारी तो चतुर्वेनी है ये....!!बुरा ना माने गणतंत्र दिवस है......!!
बहुत ही उम्दा बात कही है आपने। आपकी इसी बात पर एक शेर याद आ गया किसी ने कहा है कि
जवाब देंहटाएंकांटों से गुजर जाना, शोलों से निकल जाना
फूलों की बस्ती में जाना तो संभलकर जाना
like reading rivew
जवाब देंहटाएंhttp://katha-chakra.blogspot.com
केकड़े है रेत के चलना संभाल के................phir se kah doon....bahut acche....!!
जवाब देंहटाएंthank you
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