शनिवार, जनवरी 24, 2009

त्रिवेणी

शीरा जुबान पे खंजर कमान में
मुखौटे हसीं पर चेहरे बईमान से

केकड़े है रेत के चलना संभाल के


13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत गहरी कड़ियाँ हैं इस त्रिवेणी में

    ---आपका हार्दिक स्वागत है
    गुलाबी कोंपलें

    जवाब देंहटाएं
  2. शीरा जुबान पे खंजर कमान में
    मुखौटे हसीं पर चेहरे बईमान से

    केकड़े है रेत के चलना संभाल के

    वाह जी वाह ये आखिर की लाईन में केकडे हैं रेत में होना चाहिए था क्‍या या के ही पढा जाए जरा इस बात से प्‍लीज अवगत करा देना क्‍योंकि इस के और में के चक्‍कर में ऐसा लगा कि मेवों से मिश्रित खीर में कुछ थोडा मीठा कम लगा

    जवाब देंहटाएं
  3. मोहन जी, त्रिवेणी समझने के लिए शुक्रिया। पहला विचार हमारा भी "में "का था , शेर होता तो में चलता ,पर ये है त्रिवेणी। सरस्वती का रुख्ह गंगा और जमना से अलग होना चाहिए । इस्सलिये केकड़े है रेत के का इस्तेमाल है। जिस तरह से आप खूबसूरत मुखतो के पीछे बदसूरत चेहरों की बात करते है , मीठी जुबान वालो को कातिल करार करते हैं, वैसे ही रेत पर आप चलते हीपैरो को ठंडक देने के लिए । पर अगर रेत ही कांटे कि हैं(केकड़े ) तो पाऊँ का क्या हाल होगा।

    आशा हे, खीर में चाशनी थोडी घुल गई होगी .

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन रही त्रिवेणी..बहुत गहरी उतरी.

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह, क्या बात है। ज़िंदगी की बदकिस्मत सच्चाई यही है। बहुत सुंदरता से केवल दो पंक्तियों में व्यक्त कर दी आप ने।

    जवाब देंहटाएं
  6. कभी गंगा, जमुना, सरस्वती को एक लहजे में कह कर देखिए शायद त्रिवेणी में और भी ख़ूबसूरत धाराएँ बह चलें।

    जवाब देंहटाएं
  7. मनवा बेईमान है....छिपके भी उनियान है...
    इन्द्रियाँ हमारी ये चोरों की खानदान है...
    जख्म छिपे कैसे कि फटी हुई बनियान है !!
    .....सॉरी हमारी तो चतुर्वेनी है ये....!!बुरा ना माने गणतंत्र दिवस है......!!

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही उम्दा बात कही है आपने। आपकी इसी बात पर एक शेर याद आ गया किसी ने कहा है कि

    कांटों से गुजर जाना, शोलों से निकल जाना
    फूलों की बस्ती में जाना तो संभलकर जाना

    जवाब देंहटाएं
  9. केकड़े है रेत के चलना संभाल के................phir se kah doon....bahut acche....!!

    जवाब देंहटाएं