पल चिन्न है,छिन पल है
रोज़ सड़को पे बिकती है
पानी है यहाँ महंगा हुज़ूर
पर ज़िन्दगी बहुत सस्ती है ...
चौराहे के खूंटे पे सूखती
कड़ी तराशे सिसकती है
टूटी चूडियों के टुकड़े सहेज
कलाईया कफ़न से लिपटती है
वक़्त बहुत महंगा है हुज़ूर
पर ज़िन्दगी बहुत सस्ती है ....
अखबार की सुर्खियाँ शब् भर
लाल स्याही से चमकती है
सुबह कालिख हर्फो की
दर्द से कराह उठती है ...
"कल रात तेज़ दौड़ती गाडी
एक चिराग को बुझा उडी "
रुको, संभल के चलो
ऊँचे नभ में उड़ने वालो
ज़िन्दगी तुम्हारी भी कभी
सडको पे निकलती है ....
क्या अब भी जीने की कीमत
तुम को कम दिखती है ???
आज के आपाधापी भरे जीवन का अच्छा चित्रण किया है आपने अपनी रचना में...बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
sahi kaha jeene ki keemat ko pahchanna boht mushkil hai......
जवाब देंहटाएंयही तो हो रहा है आजकल.. बिलकुल सामयिक लेखन
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंबड़े दिनों बाद आमद.....पर जिंदगी के लिए आईने के साथ
जवाब देंहटाएंaap sab ka shukriya...
जवाब देंहटाएंzindagi ko aaina dikhane wali kavita ke lie badhai.bahut khubsurat likha hai aapne.jitni tareef ki jaye kam hai. kabhi mere blog par bhi aayen.
जवाब देंहटाएंwww.salaamzindadili.blogspot.com
aapne behtarin rachna likhi hai.....aapke shabdo ka chunav bahut hi achha rahta hai.....
जवाब देंहटाएंFarazji and Arvindji : shukriya
जवाब देंहटाएंnamaskar..
जवाब देंहटाएंbahut der se aapki kavitayen padh raha hoon ..is kavita ne man ko kahin rok sa diya hai .. aap bahut accha likhte hai ...aapki kavitao ki bhaavabhivyakti bahut sundar hai ji ..
वक़्त बहुत महंगा है हुज़ूर
पर ज़िन्दगी बहुत सस्ती है ....
ye pankhtiyan apne aap me kuch kahti hai ...
meri badhai sweekar kare,
dhanyawad.
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
shukriya Vijay ji
जवाब देंहटाएंवक़्त बहुत महंगा है हुज़ूर
जवाब देंहटाएंपर ज़िन्दगी बहुत सस्ती है
bahut sahi kaha .