रविवार, मई 13, 2007

कशमकश .....

एक कशमकश है , है नाम - ज़िंदगी
कभी ख्वाब दिखती , कभी रवानगी

दौड़ता रहा पीछे जिसके तू दिन भर
तेरी परछाई थी , साथ चली तेरे दिलबर
अब हुई शाम और तू मुड़ा है अब
कहाँ है वो.......
वो घुल गयी साँझ की किरणो के साथ
शाम ढले आने वाली शब बन कर

'शेष कल' ....

6 टिप्‍पणियां:

  1. गायत्री
    सच की पथरीली जमीं पर
    झूठ का एक आसमान है जिन्दगी

    याद रखना
    दोस्तो से अजनबी और
    दुश्मनों से आशना है जिंदगी
    तो दोस्तो से नाता जोडो फिर ना रहोगे भीड़ मे तनहा

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  2. अच्छा लिखा है. बधाई. लिखते रहें.

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  3. थोड़ा आपकी नजर..

    कभी सुनहली धूप है,
    कभी गौधुली शाम है जिंदगी,..

    बहुत खूब अच्छा लिखा है,..बधाई
    सुनीता(शानू)

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  4. गायत्री जी,सुन्दर रचना है।

    एक कशमकश है , है नाम - ज़िंदगी
    कभी ख्वाब दिखती , कभी रवानगी

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