मंगलवार, मई 29, 2007

बहुत जल्दी में हूँ ........

ग्यांन स्त्रौत कहीं सूख ना जाए
लिख लूं बहुत जल्दी में हूँ
मॉरपंखी कलाम की स्याही
कहीं सूख ना जाए
लिख लूं बहुत जल्दी में हूँ

व्यापक विचार समेटे खड़ा मन
साँझ के अंतिम छ्होर पर
लेख तार कोई टूट ना जाए
लिख लूं बहुत जल्दी में हूँ

विचार विमर्श उत्पीड़न उलांगना
द्वंध प्रतिद्वंध आँचल में समेटे
ह्रदय गति कहीं रुक ना जाए
लिख लूं बहुत जल्दी में हूँ ........

6 टिप्‍पणियां:

  1. समयबोध कराती एक अच्छी रचना है।सच है समय कभी नही ठहरता।

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  2. सुन्दर लिखा है मगर इतनी भी क्या जल्ती है.. उमर पडी है

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  3. काल करै सो आज कर,
    आज करै सो अब,
    पल में परलै होएगी
    फ़िर करेगा कब।
    कबीर साहब जितनी ही अर्थवत पर उनसे अधिक वर्णन करती हुई अभूतपूर्व रचना।
    crazy किया रे!!!

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  4. समझ तो हम गये कि जल्दी में लिखा है...मगर अच्छा है.

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  5. पता नहीं आपका सोंचना क्या है…पर
    मेरा मानना है कि यह कविता आज के भागते
    परिवेश को सामने रखकर बुनी गई है जो शब्द है वो प्रतीक है इसके…
    बहुत अच्छी कविता है…बधाई स्वीकारे!!!

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