गुरुवार, मई 24, 2007

बस एक कदम.....

उठो, जागो, कदम बढाओ
ज़िन्दगी के हर मोड पर
प्रारब्ध की मिलती हस्ती हे
बस एक कदम बढाने
की ज़रूरत हे क्यूंकि
हर कदम पर जिन्दगी बहती हे ....


बंद कमरो में घुटी साँसे हे
बंद खिड़की खोल कर हवा को
बहने दो
एक हाथ बढाने पर
हवाएँ रुख बदलती हे .....

किसी का दर्द बाँचो
कुछ अपनी कहो
मन खोलो,कुछ बोलो
एक मौन की चुप के पार
कोई एक ज़िंदगी उबरती हे.....

8 टिप्‍पणियां:

  1. अर्थपूर्ण रचना है.. बहती भी है , और प्रेरणा भी देती है..

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  2. बेहद उम्दा रचना है…जिंदगी के नये अर्थ को दिखाता…।बधाई!!

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  3. एक मौन की चुप के पार
    कोई एक ज़िंदगी उबरती हे.....


    --बहुत खूब!!

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  4. बहुत बढिया व भावपूर्ण रचना है।

    बंद कमरो में घुटी साँसे हे
    बंद खिड़की खोल कर हवा को
    बहने दो
    एक हाथ बढाने पर
    हवाएँ रुख बदलती हे .....

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  5. उठो, जागो, कदम बढाओ
    ज़िन्दगी के हर मोड पर
    प्रारब्ध की मिलती हस्ती हे
    बस एक कदम बढाने
    की ज़रूरत हे क्यूंकि
    हर कदम पर जिन्दगी बहती हे ....

    Wonderful. Reminds of a Tantra reading....so simple and natural and obvious. Perhaps too obvious and that is why we miss it. A little awareness and life beckons at every step....हर कदम पर जिन्दगी बहती हे ....

    Well thought, well constructed, well conveyed.

    Congrats!!!

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  6. किसी का दर्द बाँचो
    कुछ अपनी कहो
    मन खोलो,कुछ बोलो
    एक मौन की चुप के पार
    कोई एक ज़िंदगी उबरती हे.....

    सही है। अच्छा लगा!

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  7. सुंदर रचना के लिए बधाई !
    धन्यवाद इसे पढ़वाने के लिए

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  8. मेरी रचना को सहारने के लिये शुक्रिया आप सब बुद्धिजीवियो का। आपके साधुवाद से आगे और लिखने की प्रेरना मिलती हे

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