बंद कमरे के सन्नाटे में
चार दीवारी से झन्नाटे,
बज जाते फिर
धीरे से रुक रुक जाते
बरसो बीत गये है फिर भी
जब-तब आ कानो से है टकराते
चौबेजी के ख़रखराते... ख़र्राटे
बात है उन दीनो की हुई
जब गर्मियों की छुट्टी
बुआ मामी संग आ पहुँची
ले छुनु मुन्नू बन्नू की टोली
जून में थी बनी दीवाली
चँदाल चौकड़ी जमी थी भाई
खुराफ़ति दिमIगो ने मिल के
एक तरकीब बनाई ....
पहुँचे बाग़ में मिल सारे
अब वन माली की शामत आई....
दरख़्त लदे थे आमो से
तोड़े आम दे पत्थर दे
चँदाल चौकड़ी ने जो तबाही मचाई
लो भैया, अब टोली की ही शामत आई....
नाक में दम जब भर गया
सभी बदो ने ये तेह किया
नही सोयेंगे सब बच्चे संग
यहाँ वहाँ की जगह तेह हो ली .....
छन्नु मुन्नू का बिस्तर था
चौबेजी से सटा हुआ
रात आते आते ही
दोनो की शामत आई...
चौबेजी की उम्र थी सत्तर
घर के बड़े थे ,रौब था सब पर
सोते थे चादर तान कर
लेकर ख़र्रटे मन भर, गज भर....
जैसे जैसे रात बड़ी
ख़र्राटे की रफ़्तार बड़ी
कानो में ठूँसी थी रुई पर
उससे भी ना बात बनी
कभी इधर पलट, कभी उधर
नींद नही आने को थी
चुननु ने मुन्नू से सलाह कर
धीरे से पास में जा कर
चौबेजी की नाक में दी तीली.....
घबरा के उठे चौबेजी
देख शैतानो को थ्योरियाँ छड़ी
लो जी वो तूफ़ान उठा घर में
अब तक याद है वो रात बड़ी
मुर्गा बनके दिन भर
कैसे निकाली थी तौबा -तौबा
चुननु मुन्नू ने छुट्टी गर्मियों की ....
चौबेजी चले गये स्वर्ग को
बच्चे भी हो गये है बड़े
पर गूजते है उस कमरे में अब भी
चौबेजी के ख़र्राटे.......
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Much awaited and thoroughly entertaining. Hope Mr. Chaube enjoyed reading it as much as he enjoys snoring!!!
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