शुक्रवार, अप्रैल 06, 2007

नव युवती..ये कौन...

लहराती ,मदमाती
यौवन पर इतराती
बलखाती ,शर्माती
बिजली सी दौडी आती
देखो, देखो उस मोड़ से
आती यवनी ये कौन....

आने से इसके बाजे है
घंटियाँ मन उपवन में
इसके रोशन चहरे को देख
आंखें मद माय जीवन में

कितनों को ये पार लगाती
कितनों को ये राह दिखाती
इठलाती चलती बलखाती
ये यवनी है कौन....

अबला नही सबल है यारों
समय की बड़ी अटल हे यारों
आ के इसकी आगोश में यारों
खो जाते जाने कितने मन ....

समय का महत्त्व समझाती
लहराती चलती मदमाती
ये यवनी हे कौन....

जब से मिला हे इसका साथ
मैं भी रंग गयी इसके हाथ
सीखा है इस नव बाला से
समय बध्द्ता ,आत्मविश्वास

भूजो भूजो ये है कौन....

श्रीधरन की राज दुलारी
ये है जीं मेट्रो मेरी प्यारी

दिल्ली की है यही तो शान
मेट्रो,हर दिल का अरमान ......


















3 टिप्‍पणियां:

  1. पिछली बार दिल्ली में मेट्रो पर बैठने का मौका मिला, मजा आ गया।

    जवाब देंहटाएं
  2. I just traveled twice, wo bhi last month only.. and I think it gonna be successfull as itz in Singapore.

    Apko pata hai whatz the best part of yr poetry.. ap din bhar jinse milte ho jo bhi karte ho jo bhi achcha ya bura lagta hai.. us par 1 kavita likh sakte ho.. and you are always best...

    keep writing

    जवाब देंहटाएं
  3. he he Di!!
    metro waalon ko dikhaaiye..apna anthem bana lenge..
    baitha hoon ek baar metro mein..bhaarat se bahar ki cheez lagti hai..
    aap lagta hai har baat gaur karti hain..aur phir likh bhi daalti hain...bilkul sahi andaaz mein
    :)

    जवाब देंहटाएं