शुक्रवार, अप्रैल 06, 2007

यादें तेरी...

बहुत याद आता तेरा मुस्कुराना,
वो दबे पाँव आकर पास बैठ जाना
वो हौले से कानो में मेरे गुनगुनाना
"कोई दूर से आवाज़ दे तो चले आना"....

मैं शायर , अल्हड नादाँ
समझा नही दिल की जुबां
तेरी चुप्पी में एक बात छुपी थी
रहा मैं उस से कैसे अनजान ....

आंखों से जों बात कहीँ थी

पलकें खुली , कभी झुकी सी
सोचा आज तो लगा यही
क्यों में नैनो की मौन व्यथा
समझा नही.....
यादें तेरी...

दिल में हल्की सी आज

कसक दे गयी

जब एक पुरानी किताब से अचानक ,

तेरी शादी की तस्वीर गिर पड़ी...

तभी कानों में एक आवाज़ पड़ी

"कोई दूर से आवाज़ दे चले आना........."

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