सोमवार, दिसंबर 08, 2008

भ्रमजाल....

राह चलते तुम मिल गये यूँ ही .... बस यूँ ही ....
भीड़ का हिस्सा थी मैं ,बहुत जल्दी में थी ,शायद कहीं न पहुचने की जल्दी ....
कदमो को तेज़ दौड़ा रही थी ,फिर ....अचानक....,पल थम गया ,
इक हवा का झोंका -"सुमन ""सुमन" लहरा गया
देखा तो तुम खड़े थे ,ये तुम ही हो ना ...या है कोई सपना ...
कितने बरसो तक सपनो में यह लम्हा जीती रही हूँ ,बस फर्क इतना है की तुम्हारे बालो में हलकी सी सफेदी आ गई है ....तुम हो , सच है, सपना नही है ,तुम ही हो ,कल से निकल कर सामने खड़े हो, ये तुम ही हो ...
"क्यूँ मुझे अचानक छोड़कर चले गये थे, मेरी ज़िन्दगी के मायने बदल कर कहाँ खो गये थे" ....मन ही मन कितने सवाल कर बैठी थी विक्रम से ,पर जुबां थी की खुलती नही थी...बस एकाकी उसे देखी जाती थी जो कभी मेरी ज़िन्दगी का सूत्रधार था....
"कितनी बातें करनी है तुमसे सुमन ,चलो कहीं बैठ कर बात करते हैं, बहुत मुश्किल से तुम मिली हो ....पर तुम इतनी जल्दी में कहाँ जा रही थी, कबसे तुम्हारा नाम पुकार रहा हूँ पर तुम हो की दौडी चली जाती थी .... मुझे माफ़ करना , तुम्हे छोड़ कर पैसे के लिए मैंने नीना से शादी की और वो शौरत के लिए मुझे छोड़ गई.....मैं बहुत अकेला हूँ सुमन और मुझे तुम्हारी ज़रूरत हैं, ज़िन्दगी बहुत सूनी है सुमन, मुझे माफ़ करदो और मेरे साथ चलो..."
हूँ ,कहाँ जा रही थी ,कहाँ जा रही थी और कहाँ जाने का सोच रही थी ......" लगा धम्म से कही से आकर ज़मीन पर गिरी ....
"मुझे जाना होगा विक्रम "...
"पर कहाँ सुमन ???"
"घर, उसके पास जिसने मुझे अपनाया जब तुम मुझे छोड़ गये थे...
" मेरे पति मेरी ज़िन्दगी का अटूट हिस्सा है, मैं उन्हें कभी नही छोड़ सकती.....ग़लत थी की तुम्हारे भरम में जी रही थी, आज जाग गई हूँ।"..... तुम मेरे पास आए जब तुम्हे मेरी ज़रूरत है पर मेरे पति ने मेरा साथ तब तब दिया जब मुझे सहारे की ज़रूरत थी ...
और मेरे कदम तेज़ी से चल दिए अपने घर की तरफ़ ...अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए...
छोटे बड़े मन मुटाव बे-मायने लगने लगे थे .....अब मैं भ्रमजाल से आजाद थी....सपना खो गया था.....हकीकत को राह जों मिल गई थी.

शुक्रवार, अगस्त 15, 2008

तुम....

तुम नही हो
सन्नाटा है बस
और है परछाइयां
उदासी की ...

वीरान दीवारों पर
यादो के साए
बसते हैं
तनहा -तनहा से .....

तुम आओ तो
अमावस में भी
दूज का चाँद
उग आएगा......

तुम आओ तो
हरियाली से
बूटा बूटा
खिल जायेगा ...

तुम आओ तो
मन आँगन की
कलि फूल
बन जायेगी ......
बुझती साँसों की
कड़ी टूटती कही
कही थम जायेगी .....

तुम आओ तो
मौत से जुड़ता
रिश्ता टूट जायेगा ....

आने से बस एक तुम्हारे
उस बूढी माँ का बढता कैंसर
तन मन को कम सताएगा
आने से बस एक तुम्हारे
शायद काल कही रुक जायेगा ...

माँ कहती है
मेरा बेटा
मेरे जीवन की
हर खोयी खुशी लौटाएगा ......

शुक्रवार, जून 20, 2008

कांच

कांच है ....चटक गया तो क्या
देखो तो जुड़ कर अब भी खड़ा है.......

वो "पैटर्न " जो दीखता है उस पर
तितली है या जैसे जुगनू हो फैले
चटक की "लाईनों " से गुज़र कर
रोशन हो जाए "पैटर्न "जैसे .......

जैसे ...... मर्यादा औरत की
ठोकर लगने पर भी हर दिन
जिंदगी को नए मायने देती है
चटक की "लाइन " से गुज़र के
जिंदगी को रौशनी से भर देती है ....
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तन्हा - तनहा

शादी में "Titan" का जोड़ा मिला था
रिश्ते की छाप पड़ गयी है शीशो पर

सिर्फ सुइया मिलती है अब एक वक़्त पर
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तुम सोचती थी तो मैं मुस्कुराता था
मैं देख लूँ तो लज्जा जाती थी तुम

लकीरे सिमट गई है अब चेहरों पे
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एक तेरे और एक मेरे हाथ का छापा
घर के चौखट पे दोनों ने लगाया था

दरार पड़ गई है दरवाज़े में वही

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शुक्रवार, मई 30, 2008

ख्वाब बड़े और कमरे छोटे......

ख़्वाब संजोया है हमने
छुई मुई सा मद्धम मद्धम
पर देख हकीकत आह भरें
है ख़्वाब बड़े पर कमरे कम.........


ख़्वाब बड़े और कमरे छोटे
आसमा पर ग़र कुछ घर होते
बादलों से घर भर लेते
मुट्ठी मे बाँध कर तारो को
घर अपना जग मग कर लेते
हे ख्वाब बड़े और कमरे छोटे .....


आँख बाँध कर सपने सजोंये
पंख पखेरू साथ ले लाये
आस्मां में उड़ भर आए
बहुत खेल ली
लुक्का छुप्पी .......

छोटे छोटे कमरों मे भर
खुशिया बड़ी बड़ी सजाये
सुंदर सरल मनमोहक
अपना इक आशियाँ बसाए ....

***ख्वाब बड़े पर दिल नही छोटे ***






बुधवार, अप्रैल 16, 2008

भीड़

किसी ने था दामन खींचा और किसी ने सर से था घसीटा
हाथ कई उस पर पड़े थे ,कई लातो ने ठोकर जड़े थे
बस कसूर एक ही था उसका ,अबला थी -अकेली थी वो
कोशिश कर रही थी ज़िंदा रखने की
अपने अस्तित्वा को
अकेले ही ,अपने दम पर ,बिना किसी सरमाये के ....

"आप बस नाम बताइए सज़ा हम दिलवाएँगे
इसकी तार तार हुईअस्मत पर
इंसाफ़ का साफ़ा हम पहनाएँगे "

क्या बताए दारोगा बाबू
भीड़ की शक्ल तो नही होती
हाथ वो थे जो पाक दामन को छू ना पाए थे पहले
थी ज़ुबाने वो जिनकीछींटाकसी बेअसर थी पहले
आँखे वो थी जो हया से पारहुई जाती थी
रूह वो थी जो दफ़्न हो चुकी थीबेकासी के तमाशे के नीचे

दे सके तो हिम्मत दे अभागी को , दे सके तो दे विश्वास इसे
कि इंसानियत अभी भी ज़िंदा हे, इन्साफ यहाँ मिलता है

मैं एक अजनबी हूँ चलता हू ....
होश मे आए तो इसे कहना
भीड़ से निकले इक इंसान ने छोटी सी कोशिश कि थी
इंसानियत के पाक दामन से छींटो को कम करने की
हो इसका खुदा हाफिज़ हे यही दुआ मेरी







शुक्रवार, जनवरी 25, 2008

मैं .....कौन.....पथ पर ...

कारवाँ गुज़र गये
मैं कही नही गया
बीती सदियान कई
था वक़्त मेरा थम गया ....

कितने राज पाट देखे
राजा बन फकीर देखे
फ़ासले घटते रहे
तूफान भी गुज़र चले
पर था खड़ा जहाँ
मैं कभी नही हिला .....

मैं.....मील का पत्थर...
गुज़रे इतिहास का गवाह...

रास्तो के किनारे पे
आज भी वहीं खड़ा
जहाँ मैं गाड़ा गया था
कई सदियों पहले बन निशाँ .....

बन इत्तिहास का मौन गवाह
मैं... मील का पत्थर.....
मैं....मौन दर्शक......
मैं ....मूक श्रोता .......

शुक्रवार, जनवरी 11, 2008

कोई अनजाना सा .....

एक अनोखा सा भाव हे जों
हर पल महसूस हुए मुझको
तेरे आने की हर आहट पर
मॅन कहता हे ऐसे कुछ तो

अब तक तो मैंने सबसे
रक्खा था छुपा के तुझको
तू सोचे वही जों मैं सोचूं
तू समझे वही जों मैं कह दूँ

जिस दिन से हम तुम है जुडे
मैंने है दिए तुझे संस्कार मेरे
अपने कोख की परतों में
अपने ख्वाबो की बस्ती में......

एक अनजाना भय है फिर भी
आ आ के सताता हे पल छिन
क्या तू बन पायेगा
जों चाहे बनाना मेरा दिल

क्या इस दुनिया के रंगो में
रंग जाएगा तू भी इक दिन
या फिर मेरे नक्शे कदम पे
रख पायेगा अपने पद चिह्न .....

पर मेरे बच्चे है मुझे यकीन
तू होगा इक कच्ची मिटटी
गड़ पाऊँगी अपने रंग ढंग में
गड़ पाऊँगी में तेरी हस्ती

आखिर तेरा मेरा रिश्ता था जुडा
दुनिया से महीनों पहले का
अब नही कोई डर इस दिल में
बस है इक आस तन मन में
है एक इंतज़ार.......

....तुझे भर अपनी बाहों में
सुनाऊं लोरिया कानो में
मेरे नन्हें सपने ,
मेरे अन्जन्मे मुन्ने .