शुक्रवार, अगस्त 15, 2008

तुम....

तुम नही हो
सन्नाटा है बस
और है परछाइयां
उदासी की ...

वीरान दीवारों पर
यादो के साए
बसते हैं
तनहा -तनहा से .....

तुम आओ तो
अमावस में भी
दूज का चाँद
उग आएगा......

तुम आओ तो
हरियाली से
बूटा बूटा
खिल जायेगा ...

तुम आओ तो
मन आँगन की
कलि फूल
बन जायेगी ......
बुझती साँसों की
कड़ी टूटती कही
कही थम जायेगी .....

तुम आओ तो
मौत से जुड़ता
रिश्ता टूट जायेगा ....

आने से बस एक तुम्हारे
उस बूढी माँ का बढता कैंसर
तन मन को कम सताएगा
आने से बस एक तुम्हारे
शायद काल कही रुक जायेगा ...

माँ कहती है
मेरा बेटा
मेरे जीवन की
हर खोयी खुशी लौटाएगा ......

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत करुण कविता है।

    आजाद है भारत,
    आजादी के पर्व की शुभकामनाएँ।
    पर आजाद नहीं
    जन भारत के,
    फिर से छेड़ें, संग्राम एक
    जन-जन की आजादी लाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढिया.

    स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

    जवाब देंहटाएं
  3. आने से बस एक तुम्हारे
    उस बूढी माँ का बढता कैंसर
    तन मन को कम सताएगा
    आने से बस एक तुम्हारे
    शायद काल कही रुक जायेगा ...

    माँ कहती है
    मेरा बेटा
    मेरे जीवन की
    हर खोयी खुशी लौटाएगा ......


    सीधा दिल में उतरी है ये पंक्तिया.......

    जवाब देंहटाएं
  4. तुम आओ तो
    हरियाली से
    बूटा बूटा
    खिल जायेगा ...
    बहुत अच्छी पंक्तियां। सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  5. माँ कहती है
    मेरा बेटा
    मेरे जीवन की
    हर खोयी खुशी लौटाएगा ......

    भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति.

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं