शुक्रवार, जनवरी 11, 2008

कोई अनजाना सा .....

एक अनोखा सा भाव हे जों
हर पल महसूस हुए मुझको
तेरे आने की हर आहट पर
मॅन कहता हे ऐसे कुछ तो

अब तक तो मैंने सबसे
रक्खा था छुपा के तुझको
तू सोचे वही जों मैं सोचूं
तू समझे वही जों मैं कह दूँ

जिस दिन से हम तुम है जुडे
मैंने है दिए तुझे संस्कार मेरे
अपने कोख की परतों में
अपने ख्वाबो की बस्ती में......

एक अनजाना भय है फिर भी
आ आ के सताता हे पल छिन
क्या तू बन पायेगा
जों चाहे बनाना मेरा दिल

क्या इस दुनिया के रंगो में
रंग जाएगा तू भी इक दिन
या फिर मेरे नक्शे कदम पे
रख पायेगा अपने पद चिह्न .....

पर मेरे बच्चे है मुझे यकीन
तू होगा इक कच्ची मिटटी
गड़ पाऊँगी अपने रंग ढंग में
गड़ पाऊँगी में तेरी हस्ती

आखिर तेरा मेरा रिश्ता था जुडा
दुनिया से महीनों पहले का
अब नही कोई डर इस दिल में
बस है इक आस तन मन में
है एक इंतज़ार.......

....तुझे भर अपनी बाहों में
सुनाऊं लोरिया कानो में
मेरे नन्हें सपने ,
मेरे अन्जन्मे मुन्ने .

6 टिप्‍पणियां:

  1. एक माँ की संवेदनाओं को बखूबी अभिव्यक्त किया है।बढिया रचना है।

    क्या इस दुनिया के रंगो में
    रंग जाएगा तू भी इक दिन
    या फिर मेरे नक्शे कदम पे
    रख पायेगा अपने पद चिह्न .....

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  2. मातृत्व की अपेक्षा और इस बीच आते जाते भावों का उम्दा चित्रण।

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  3. आज अचानक भटकते भटकते आपके ब्लॉग़ पर आना सफल हो गया.... बहुत भावभीनी रचना...
    पर मेरे बच्चे है मुझे यकीन
    तू होगा इक कच्ची मिटटी
    गड़ पाऊँगी अपने रंग ढंग में
    गड़ पाऊँगी में तेरी हस्ती
    आज के समय में हर माँ में इस यकीन की ज़रूरत है.

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  4. एक अनजाना भय है फिर भी
    आ आ के सताता हे पल छिन
    क्या तू बन पायेगा
    जों चाहे बनाना मेरा दिल

    BAHUT SUNDAR MANOBHAV UBHAR AAYAA HAI....
    PAR APNE HISAB SE USKO BANAANE KI KOSHISH HI TO SARE DARD KA SABAB HAI...

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