शुक्रवार, जून 20, 2008

कांच

कांच है ....चटक गया तो क्या
देखो तो जुड़ कर अब भी खड़ा है.......

वो "पैटर्न " जो दीखता है उस पर
तितली है या जैसे जुगनू हो फैले
चटक की "लाईनों " से गुज़र कर
रोशन हो जाए "पैटर्न "जैसे .......

जैसे ...... मर्यादा औरत की
ठोकर लगने पर भी हर दिन
जिंदगी को नए मायने देती है
चटक की "लाइन " से गुज़र के
जिंदगी को रौशनी से भर देती है ....
************************************

7 टिप्‍पणियां:

  1. मर्यादा औरत की
    ठोकर लगने पर भी हर दिन
    जिंदगी को नए मायने देती है
    चटक की "लाइन " से गुज़र के
    जिंदगी को रौशनी से भर देती है ....
    bhut hi gahari paktiya.likhati rhe. aap apna word verification hata le taki humko tipani dene me aasani ho.

    जवाब देंहटाएं
  2. चटक की "लाइन " से गुज़र के
    जिंदगी को रौशनी से भर देती है ....

    --वाह, क्या बात है, बहुत खूब!!

    जवाब देंहटाएं
  3. चटक की "लाइन " से गुज़र के
    जिंदगी को रौशनी से भर देती है ....

    क्या बात कही है बहुत खूब........लिखती रहे...

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रयोग की दृश्टि से रचना अनूठी और बेहतरीन है..


    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं