शुक्रवार, मई 30, 2008

ख्वाब बड़े और कमरे छोटे......

ख़्वाब संजोया है हमने
छुई मुई सा मद्धम मद्धम
पर देख हकीकत आह भरें
है ख़्वाब बड़े पर कमरे कम.........


ख़्वाब बड़े और कमरे छोटे
आसमा पर ग़र कुछ घर होते
बादलों से घर भर लेते
मुट्ठी मे बाँध कर तारो को
घर अपना जग मग कर लेते
हे ख्वाब बड़े और कमरे छोटे .....


आँख बाँध कर सपने सजोंये
पंख पखेरू साथ ले लाये
आस्मां में उड़ भर आए
बहुत खेल ली
लुक्का छुप्पी .......

छोटे छोटे कमरों मे भर
खुशिया बड़ी बड़ी सजाये
सुंदर सरल मनमोहक
अपना इक आशियाँ बसाए ....

***ख्वाब बड़े पर दिल नही छोटे ***






6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिनों बाद आयी है पर एक खूबसूरत कविता लेकर....

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  2. ख़्वाब संजोया है हमने
    छुई मुई सा मद्धम मद्धम
    पर देख हकीकत आह भरें
    है ख़्वाब बड़े पर कमरे कम.........

    वाह!!

    ***राजीव रंजन प्रसाद

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  3. ***ख्वाब बड़े पर दिल नही छोटे ***
    वाह क्या कविता है.
    सुंदर.

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  4. सुंदर अभिव्यक्ति.. यूही लिखती रहिए..

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  5. आप सबकी हौसला अफ़ज़ाहि का शुक्रिया

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