बुधवार, सितंबर 05, 2007

वंश वृद्धि

"किस तरह की माँ हे ये ?" अखबार को नीचे रखते हे मेरे मुँह से आह निकली .
नारी जननी से भक्षक कैसे बन सकती हे। मेरे मॅन को ये सवाल कचोट रहा था।
"क्या हुआ बहु जी , क्यों परेशान हो रही हो ?" कमरे मे झाड़ू लगाती मेरी मेहरी उषा ने पूछा ।
उषा और उसकी पन्द्रह साल की बेटी पूजा हमारे यहाँ झाड़ू कटके का काम करती हे। २ बेटे और ४ बेटियों की माँ उषा हमारे यहाँ कई सालो से हे . बेटे निकम्मे हे और पति शराबी ,इसलिये उसकी लड़कियां काम मे उसकी मदद करके घर चलता हे । कितनी बार उसने मार के निशाँ दिखाए हे जों उसके बेटो और पति के अत्याचार की कहानी कहते हे।

"लिखा हे , दो हफ्तों में ये दूसरी घटना हे की एक माँ ने अपनी नवजिवित कन्या का गला दबा कर हत्या कर दी थी। क्या लड़की होना इतना बड़ा अभिशाप हे?" मैने बताया.

"नही बहु जी, उनकी कोई मज़बूरी रही होगी।अपना जना कोई क्यों मरेगा भला, अभागी लड़की ही जनि हो . वैसे एक लड़का होना भी तो ज़रूरी हे . मैं तो कहती हूँ भगवन तुम्हे भी इस बार लड़का ही दे, पिछले बार लड़की हो गयी सो हुई . वंश को भी तो आगे बदना हे।" उषा का जवाब था.

मैं निशब्द थी और हैरान भी। हमारे देश मे रुदिवादिता ने ऐसा डेरा डाला हे की एक औरत ही औरत के महत्त्व को नही समझती। क्या ये समय बदलेगा ???

2 टिप्‍पणियां:

  1. अरे माँ जैसी लघु-कथा लिख दी तुम ने। बहुत अच्छी लगी। और लिखा करो।

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  2. Shekhar ji,sahi pehchaana aapne. Ma ke writing style ko follow karne ki koshish ki hai ....kuch shabdo mein bahut kuch kehne ka style ajab hai unka.

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