रविवार, अगस्त 12, 2007

अम्मा जी :भाग II

लोधी कॉलोनी पहुँचते हुए लगभग सात बज गए थेय.हाल में घुस कर शेखर पुरस्कृत लोगों की रो मे चले गए और नंदिनी और सूरज पीछे की रो में बैठ गए ।

सम्मानित होने वाले और सम्मान देने वालो में बहुत नामी हस्तिया थी.नंदिनी के लिए ये एक नया अनुभव था। उसने हौले से सूरज से पूछा "शेखर भाई साहब को किस किताब के लिए सम्मान मिल रहा हे "
" शेखर ने अपनी माँ की जीवन पर एक नोवेल लिखा हे "अम्माजी :कांटो से गुज़रा जीवन" ,बेस्ट सेलर रहा हे और उसी के लिए सर्कार उसे सम्मान दे रही हे "सूरज ने नंदिनी को बताया ।
"शेखर जी की माँ,कहॉ रहती हैं?"
" भोपाल मे, शेखर उनसे मिलने ही पिछले महीने आया था ,यहाँ से फिर उनके पास जाएगा .नंदू पता हे,शेखर की माँ विधवा थी, बहुत जतन से उसको पाल पोस कर उसे इतना लायक बनाया ".
कहीँ अम्माजी के बेटे शेखर जी तो नही...??? नंदिनी ने मन ही मन सोचा और बहुत उदास हो गयी ।

स्टेज पर अवार्ड घोषित हो रहे थे। अब शेखर की बारी थी ...
" सम्मान को स्वीकारते हुए शेखर की आंखो मे आंसू थे ...स्वीकृति स्पीच मे शेखर ने अपनी माँ को अपनी जीवन की प्रेरणा बताया ,वे बोले " मेरी माँ ने जीवन मे कुछ नही माँगा ,सिर्फ मेरी तरक्की और भले की कामना रखी। मे आज तक सोचता रहा की मैंने उन्हें फ़ोन करके, पैसा भेज कर,साल मे दो बार मिल कर अपना फ़र्ज़ पूरा करता रहा और अब उनके जीवन पर किताब लिख कर ,दुनिया को उनके संगर्ष के बारे मे बता कर अपने बेटे होने का कर्ज़ उतार दिया पर मे कितना गलत था .....आज जब मैंने ओने मित्र की धरम्पतनी,नंदिनी भाभी के मुँह से अपनी माँ जैसी एक और वृधा की कथा सुनी तो मुझे एहसास हुआ की माँ को उन सब चीजो की ज़रूरत नही जों मैं उन्हें भेजता था,जीवन एक अन्तिम छोर पर उन्हें मेरे प्यार और साथ की ज़रूरत हे। मुझे अनजाने ही सही,पर ये बोध कराने के आपका बहुत शुक्रिया भाभी......"

सारा हाल तालियों से गूँज रहा था और बहुत कुछ आंखें नम थी।अप्रवासी दिवस पर माँ की प्रभुद्ता को इतना बड़ा सम्मान जों मिल था।

शायद कुछ और अम्माजी अपने परिवारो का अब साथ पा जायेंगी। छलकते आंसुओं को रोकते हुए नंदिनी के होंठों पर एक हलकी सी मुस्कराहट फेल गयी ।

**************************एक नयी शुरुवात *****************************

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुबह का भूला अगर शाम को घर आ जाय तो उसे भूला नहीं कहते। शेखर को समय रहते आभास हो गया। यह उसकी ख़ुशकिस्मती थी। और अम्मा जी की भी। आज के दौर को दर्शाती समय-संगत कथा के लिये बहुत बहुत बधाई।

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  2. मां का प्यार तो ऐसा ही होता है। मुझे अपनी मां की भी याद आयी। हांलाकि वे अन्त समय तक हमेशा मेरे साथ रहीं।

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