धीमी सी हैं साँसें मेरी
बहुत तेज़ पर रफ़्तार तेरी
ए मौत तू जीतेगी जंग आज......
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ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त का बाज़ार है गरम साहिब
हुस्न,इश्क़ और जज़्बात बहुत बिकते हैं यहाँ
वफ़ा और क़ुर्बानी की क़ीमत पर है बहुत कम....
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जोड़ के रक्खा था जिसने सबको
तागा वो आज पर चटक हीगया
टूटे टुकड़े ज़ख़्म छोड़ गये गहरे......
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जादूगर ज़ो छू मंतर बोलेगा
दिखते को ग़ायब कर देगा
नफ़रत करे फ़ना तो शफा मानू ........
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मा के पल्लू में छुपा करती थी जो कल् तक
आज शर्मा के अपने आँचल में सिमटी बैठी है
पराया धन है ज़ो ले जाएँगे डोली में कहार.......
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त्रिवेणियां अच्छी लगी । विशेष कर :
जवाब देंहटाएं-----
जादूगर ज़ो छू मंतर बोलेगा
दिखते को ग़ायब कर देगा
नफ़रत करे फ़ना तो शफा मानू ........
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ईकविता में अपनी कविताए भेजेंगे तो अच्छा लगेगा।
http://launch.groups.yahoo.com/group/ekavita/
बहुत उम्दा!! बधाई. गुलजार जी की इस विधा में कम ही लोग पारंगत हैं.
जवाब देंहटाएंAnoop ji,
जवाब देंहटाएंshukriya,aapki hausla afzaahi ke liye.
ekavita ko zarur explore karungi...ahut shukriya :)
Lal Sahab,
humesha ki tarah aapki feedback ka intezaar tha. bahut shukriya :)
बहुत अच्छा लगा पढ़कर…
जवाब देंहटाएंशब्दों का सुंदर प्रयोग किया तथ्य को समझते हुए…।
@डिवाइन इंडिया जी :
जवाब देंहटाएंशुक्रिया.