आओ एक नया जहाँ बसाए
इक दूजे में हम समां जाये
अब दुनिया से मन भर गया हे
कुछ सपनो की दीवारे बनाए
हसीं खयालों से उन्हें सजाए
ईंट पत्थर से ना हो वास्ता
आओ कुछ मिटटी गारा ले आये
कुछ तुमसा कुछ मुझसा बनाए
अब खिलोने से दिल भर गया
आओ कहीँ दूर निकल जाये
शांति और अमन को अपनाए
ख़ून खराबे से हो किसका भला
शनिवार, सितंबर 22, 2007
शुक्रवार, सितंबर 14, 2007
कुछ त्रिवेनियाँ .......
धीमी सी हैं साँसें मेरी
बहुत तेज़ पर रफ़्तार तेरी
ए मौत तू जीतेगी जंग आज......
************************************
ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त का बाज़ार है गरम साहिब
हुस्न,इश्क़ और जज़्बात बहुत बिकते हैं यहाँ
वफ़ा और क़ुर्बानी की क़ीमत पर है बहुत कम....
*************************************
जोड़ के रक्खा था जिसने सबको
तागा वो आज पर चटक हीगया
टूटे टुकड़े ज़ख़्म छोड़ गये गहरे......
*************************************
जादूगर ज़ो छू मंतर बोलेगा
दिखते को ग़ायब कर देगा
नफ़रत करे फ़ना तो शफा मानू ........
**************************************
मा के पल्लू में छुपा करती थी जो कल् तक
आज शर्मा के अपने आँचल में सिमटी बैठी है
पराया धन है ज़ो ले जाएँगे डोली में कहार.......
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बहुत तेज़ पर रफ़्तार तेरी
ए मौत तू जीतेगी जंग आज......
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ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त का बाज़ार है गरम साहिब
हुस्न,इश्क़ और जज़्बात बहुत बिकते हैं यहाँ
वफ़ा और क़ुर्बानी की क़ीमत पर है बहुत कम....
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जोड़ के रक्खा था जिसने सबको
तागा वो आज पर चटक हीगया
टूटे टुकड़े ज़ख़्म छोड़ गये गहरे......
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जादूगर ज़ो छू मंतर बोलेगा
दिखते को ग़ायब कर देगा
नफ़रत करे फ़ना तो शफा मानू ........
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मा के पल्लू में छुपा करती थी जो कल् तक
आज शर्मा के अपने आँचल में सिमटी बैठी है
पराया धन है ज़ो ले जाएँगे डोली में कहार.......
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गुरुवार, सितंबर 06, 2007
कांच के रिश्ते
कुछ कच्चे घरोंदो को
जब शक्ल देनी चाही
तो हाथ खुद ब खुद ही
मिटटी में सन् गए हैं
कोशिश हमारी ये थी
की हो जाये चराग रोशन
दिया बाती की जलती लौ ने
दमन फकत किये हैं
दूजे के कांधे
को हम
दीवार
तो हे समझे
पर औरों की क्या परवा
उनको पडे ज़रूरत
तो आँचल में अपने छुप कर
आगे निकल रहे हैं
हमने तो सिर्फ था चाहा
एक नेक काम करना
शर्मिंदगी से हम ही
खुद मे सिमट रहे हैं
हे कांच के सब रिश्ते
पल भर में चिट्कते हे
ऐसी फकत ही दुनिया
ऐसे फकत हे नाते
क्या कहे क्या सुने हम
सम् मौन अब रखते हैं
जब शक्ल देनी चाही
तो हाथ खुद ब खुद ही
मिटटी में सन् गए हैं
कोशिश हमारी ये थी
की हो जाये चराग रोशन
दिया बाती की जलती लौ ने
दमन फकत किये हैं
दूजे के कांधे
को हम
दीवार
तो हे समझे
पर औरों की क्या परवा
उनको पडे ज़रूरत
तो आँचल में अपने छुप कर
आगे निकल रहे हैं
हमने तो सिर्फ था चाहा
एक नेक काम करना
शर्मिंदगी से हम ही
खुद मे सिमट रहे हैं
हे कांच के सब रिश्ते
पल भर में चिट्कते हे
ऐसी फकत ही दुनिया
ऐसे फकत हे नाते
क्या कहे क्या सुने हम
सम् मौन अब रखते हैं
बुधवार, सितंबर 05, 2007
वंश वृद्धि
"किस तरह की माँ हे ये ?" अखबार को नीचे रखते हे मेरे मुँह से आह निकली .
नारी जननी से भक्षक कैसे बन सकती हे। मेरे मॅन को ये सवाल कचोट रहा था।
"क्या हुआ बहु जी , क्यों परेशान हो रही हो ?" कमरे मे झाड़ू लगाती मेरी मेहरी उषा ने पूछा ।
उषा और उसकी पन्द्रह साल की बेटी पूजा हमारे यहाँ झाड़ू कटके का काम करती हे। २ बेटे और ४ बेटियों की माँ उषा हमारे यहाँ कई सालो से हे . बेटे निकम्मे हे और पति शराबी ,इसलिये उसकी लड़कियां काम मे उसकी मदद करके घर चलता हे । कितनी बार उसने मार के निशाँ दिखाए हे जों उसके बेटो और पति के अत्याचार की कहानी कहते हे।
"लिखा हे , दो हफ्तों में ये दूसरी घटना हे की एक माँ ने अपनी नवजिवित कन्या का गला दबा कर हत्या कर दी थी। क्या लड़की होना इतना बड़ा अभिशाप हे?" मैने बताया.
"नही बहु जी, उनकी कोई मज़बूरी रही होगी।अपना जना कोई क्यों मरेगा भला, अभागी लड़की ही जनि हो . वैसे एक लड़का होना भी तो ज़रूरी हे . मैं तो कहती हूँ भगवन तुम्हे भी इस बार लड़का ही दे, पिछले बार लड़की हो गयी सो हुई . वंश को भी तो आगे बदना हे।" उषा का जवाब था.
मैं निशब्द थी और हैरान भी। हमारे देश मे रुदिवादिता ने ऐसा डेरा डाला हे की एक औरत ही औरत के महत्त्व को नही समझती। क्या ये समय बदलेगा ???
नारी जननी से भक्षक कैसे बन सकती हे। मेरे मॅन को ये सवाल कचोट रहा था।
"क्या हुआ बहु जी , क्यों परेशान हो रही हो ?" कमरे मे झाड़ू लगाती मेरी मेहरी उषा ने पूछा ।
उषा और उसकी पन्द्रह साल की बेटी पूजा हमारे यहाँ झाड़ू कटके का काम करती हे। २ बेटे और ४ बेटियों की माँ उषा हमारे यहाँ कई सालो से हे . बेटे निकम्मे हे और पति शराबी ,इसलिये उसकी लड़कियां काम मे उसकी मदद करके घर चलता हे । कितनी बार उसने मार के निशाँ दिखाए हे जों उसके बेटो और पति के अत्याचार की कहानी कहते हे।
"लिखा हे , दो हफ्तों में ये दूसरी घटना हे की एक माँ ने अपनी नवजिवित कन्या का गला दबा कर हत्या कर दी थी। क्या लड़की होना इतना बड़ा अभिशाप हे?" मैने बताया.
"नही बहु जी, उनकी कोई मज़बूरी रही होगी।अपना जना कोई क्यों मरेगा भला, अभागी लड़की ही जनि हो . वैसे एक लड़का होना भी तो ज़रूरी हे . मैं तो कहती हूँ भगवन तुम्हे भी इस बार लड़का ही दे, पिछले बार लड़की हो गयी सो हुई . वंश को भी तो आगे बदना हे।" उषा का जवाब था.
मैं निशब्द थी और हैरान भी। हमारे देश मे रुदिवादिता ने ऐसा डेरा डाला हे की एक औरत ही औरत के महत्त्व को नही समझती। क्या ये समय बदलेगा ???
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