रविवार, मार्च 18, 2007

तुम थी बस....

तुम.....

मुझे कहा करती थी "प्यारी परी मेरी "
बिखरी ज़ुल्फ़ॉ में उंगली फिराते हुए
रंगीन चश्मे से दिखाई थी दुनिया
ग़म और ग़रीबी मुझसे छुपाते हुए

तुम थी बस....

तन्हा थी मैं साथी छोड़ गया था मेरा साथ
कोई नही था बस तुम थी ,तुम मेरे पास
याद है तुमको. थामे रखा था कैसे तुमने
कस के अपने हाथो में देर तक मेरा हाथ....

तुमने संभाला ....

सबने बिखराया था मुझे पर तुमने
समेटा फूलों की तरह निस्वार्थ
दिया प्यार मुझे इतना ज़्यादा
गहरे सागर का जल जैसे अथात

तुमने....

मिटा दिया अपना अस्तित्व,
अपनी हस्ती मुझे बचाते हुए
ख़त्म किया अपना हर जज़्बात
सीने से मेरा ग़म लगाते हुए...

तुम्हे पता है........

मेरी रूह बस्ती है तुझमे माँ
कर सकती तुझे ख़ुद से जुदा नही
मुझे छोड़ के ना जाना कभी क्योंकी
तेरे बिना जीना मैने कभी सीखा नही....

तुमने देखा है अपना अक्स मुझ में हमेशा
और
मैं भी... तेरी रूह का एक हिस्सा हो गयी हूँ
जुदा हुई जो तुमसे कभी तो फ़ना हो जाऊंगी....

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया लिखा है तुमने गायत्री। आँखे भर आयीं। और जब पाठक की आँखें नम हो जायें तो लेखक अपनी लेखिनी में सफ़ल है। कविता पढ़ कर अपनी खुद की ब्लाग entry याद आ गयी। समय मिले तो तुम यह entry यहाँ पढ़ सकती हो:
    http://retroposts.blogspot.com/2002/04/my-best-girl-friend.html

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  2. aap bahut buri ho..
    kisi ko is tarah rullate hain kya?

    I am missing my MOM.
    seriosly meri ankhein nam hain

    keep writing Appi

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