छोड़ के आए थे हम
उसके आँगन में अपनी खुशबू
आज फिर जब लौटे हैं मिले
बस काँटे तितर बितर....
कहती है माँ देखा करती थी वो
रस्ता मेरा चारों पहर
सोती थी मायूस सी होकर
चिट्ठी मेरी जो मिली नही अगर..
लौट के आया था लेकर
फूल सत्ररंगी उसके लिए
सोचा था ख़ुश होगी वो
भुला देगी देर हो गयी गर...
बोला मुझको गाँव का बूड़ा
देखा जिसने था मेरा बचपन
मेरी यादों की परछाई से
बाहर कभी वो निकली नही....
ना ये पता था मुझको ए दिल
मिट्टी में थी वो मिली हुई...
कहते हैं अख़िरी बार पुकारा था
जब उसने मेरा नाम लबों से
आसमान भी बरस पड़ा था..
आसमान था बस था ना मैं गर...
कल कुछ फूल उसकी क़ब्र
पे रख के लौटा हूँ
साथ में अपनी मय्यत का
सामान भी लेकर लौटा हूँ
दूर गगन से मुझको पुकारता है कोई....
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
bilkul aisa hi lagta hai jab koi apna chala jata hai........
जवाब देंहटाएंsahi expressions daalna koi aapse sikhe...
waise puri kavita hi bahut hi achhi hai.ek kahani hai is mein...
kaise itni asaani se express kar paati hain aap and approrpiately
जवाब देंहटाएंso true for people like us who are so far from our families..especially old parents who are not with us..
we just keep on praying and keep our fingers crossed ki aisa waqt na aaye hamari life mein...
I dont wanna comment coz I cant
जवाब देंहटाएंjust speechless
beshabd hoon Di!!
जवाब देंहटाएं