शुक्रवार, फ़रवरी 27, 2009

आदतें भी अजीब होती हैं.**

आदतें भी अजीब होती हैं.....

सिगरट के धुए की तरह
साँसों में बस गए हो तुम
निकोटीन की डोस बन कर.....

दिल चाहता है कि
यह कमबख्त धुआ
ज़मी से उड़ कर-
बस जाए आँखों में तेरी
दो बूँद आंसू बन कर .....

और जब भी नम पलके रो कर
आँखों से खफा हो जाए ,
नादान आंसू ढलक के
उतर जाए दिल में तेरे......
आगोश में साँसों को लिए
बस जाए धड़कन की जगह
और........
मेरे होने की मीठी चुभन
तेरे दिल में टीस दे गुज़र जाए
मेरे न होने का सबब लिए हुए ....

क्यूँ न मैं फिर से जी लूँ एक पल
जैसे जिया करती थी सदियों पहले ...
- एक पल भी एक सदी से कम तो नही -

आदतें भी अजीब होती हैं...
जीने नही देती जीते - जीते
और मर के मरने भी नही देती ...

** शीर्षक के लिए आभार मेरे मित्र "मस्तो "को , उन्हें यहाँ पढ़े :
ह्त्त्प://मस्तो९६.ब्लागस्पाट.कॉम/२००७/०८/ब्लॉग-पोस्ट_१४.हटमल

बुधवार, फ़रवरी 25, 2009

एक बाल कविता


राजू से शेखर मिले,

कर कर लम्बे हाथ.


कर कर लम्बे हाथ मिले तो चमकी किस्मत

और दूर हुई उनके जीवन में फैली खट - पट.


दूर हुई खट - पट तो उनका मन मुस्काया,

और खेल - कूद का मौसम फिर से वापिस आया.


इसी तरह 'गर सब जन मिलते,

कर कर लम्बे हाथ;

ह़ंसी खुशी का राज हो दिल में,

जग में हो उल्लास

शुक्रवार, फ़रवरी 20, 2009

कारपोरेट ज़िन्दगी

ज़िन्दगी के मायने कुछ धुंधलाने लगे है
"फार्मोलों "से आगे "बिज़नस सूट "आने लगे है

दफ्तरों से निकल बाहर पंहुचा है व्यापार
"गोल्फ कोर्सों " पे अब शामियाने सजे है

हाई क्लास के "वाईनींग डायनिंग "करे हैं
बेकार "मिडनाईट आयल " जलाने लगे है

फलसफे नए रोज़ आने लगे है
हो सच वो या सौदा भुनाने चले है

खुदाई के बन्दे वहां तक है पहुंचे
जहा रोज़ खुदा नए नज़र आने लगे है

मायने ज़िन्दगी के धुंधलाने लगे है
मायने ज़िन्दगी के भुलाने लगे है ......
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वाह वाही की ज़िन्दगी शाही ही सही
आइना दिखा सके सच्चा साथी वही

क्यूँ हो गया हूँ फिर मैं भीड़ में तन्हा .....

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