तुम.....
मुझे कहा करती थी "प्यारी परी मेरी "
बिखरी ज़ुल्फ़ॉ में उंगली फिराते हुए
रंगीन चश्मे से दिखाई थी दुनिया
ग़म और ग़रीबी मुझसे छुपाते हुए
तुम थी बस....
तन्हा थी मैं साथी छोड़ गया था मेरा साथ
कोई नही था बस तुम थी ,तुम मेरे पास
याद है तुमको. थामे रखा था कैसे तुमने
कस के अपने हाथो में देर तक मेरा हाथ....
तुमने संभाला ....
सबने बिखराया था मुझे पर तुमने
समेटा फूलों की तरह निस्वार्थ
दिया प्यार मुझे इतना ज़्यादा
गहरे सागर का जल जैसे अथात
तुमने....
मिटा दिया अपना अस्तित्व,
अपनी हस्ती मुझे बचाते हुए
ख़त्म किया अपना हर जज़्बात
सीने से मेरा ग़म लगाते हुए...
तुम्हे पता है........
मेरी रूह बस्ती है तुझमे माँ
कर सकती तुझे ख़ुद से जुदा नही
मुझे छोड़ के ना जाना कभी क्योंकी
तेरे बिना जीना मैने कभी सीखा नही....
तुमने देखा है अपना अक्स मुझ में हमेशा
और
मैं भी... तेरी रूह का एक हिस्सा हो गयी हूँ
जुदा हुई जो तुमसे कभी तो फ़ना हो जाऊंगी....
रविवार, मार्च 18, 2007
गुरुवार, मार्च 15, 2007
तुम कहाँ गये ??
छोड़ के आए थे हम
उसके आँगन में अपनी खुशबू
आज फिर जब लौटे हैं मिले
बस काँटे तितर बितर....
कहती है माँ देखा करती थी वो
रस्ता मेरा चारों पहर
सोती थी मायूस सी होकर
चिट्ठी मेरी जो मिली नही अगर..
लौट के आया था लेकर
फूल सत्ररंगी उसके लिए
सोचा था ख़ुश होगी वो
भुला देगी देर हो गयी गर...
बोला मुझको गाँव का बूड़ा
देखा जिसने था मेरा बचपन
मेरी यादों की परछाई से
बाहर कभी वो निकली नही....
ना ये पता था मुझको ए दिल
मिट्टी में थी वो मिली हुई...
कहते हैं अख़िरी बार पुकारा था
जब उसने मेरा नाम लबों से
आसमान भी बरस पड़ा था..
आसमान था बस था ना मैं गर...
कल कुछ फूल उसकी क़ब्र
पे रख के लौटा हूँ
साथ में अपनी मय्यत का
सामान भी लेकर लौटा हूँ
दूर गगन से मुझको पुकारता है कोई....
उसके आँगन में अपनी खुशबू
आज फिर जब लौटे हैं मिले
बस काँटे तितर बितर....
कहती है माँ देखा करती थी वो
रस्ता मेरा चारों पहर
सोती थी मायूस सी होकर
चिट्ठी मेरी जो मिली नही अगर..
लौट के आया था लेकर
फूल सत्ररंगी उसके लिए
सोचा था ख़ुश होगी वो
भुला देगी देर हो गयी गर...
बोला मुझको गाँव का बूड़ा
देखा जिसने था मेरा बचपन
मेरी यादों की परछाई से
बाहर कभी वो निकली नही....
ना ये पता था मुझको ए दिल
मिट्टी में थी वो मिली हुई...
कहते हैं अख़िरी बार पुकारा था
जब उसने मेरा नाम लबों से
आसमान भी बरस पड़ा था..
आसमान था बस था ना मैं गर...
कल कुछ फूल उसकी क़ब्र
पे रख के लौटा हूँ
साथ में अपनी मय्यत का
सामान भी लेकर लौटा हूँ
दूर गगन से मुझको पुकारता है कोई....
शनिवार, मार्च 03, 2007
तुमने तो देखा होगा....
उदास ख़ामोश दरिया में फ़ैका था पत्थर तुमने
पत्थर की कंपन से जन्मे भंवर को देखा होगा...
मेरा अक्स उस भंवर में अनजाने फंस गया था
कुछ छटपाटाकर उसे ऊबरते तो देखा होगा....
थी ज़िंदगी थमी सेहएर-रेगिस्तान जैसी
अमवास को उठते रेत के भंवर को देखा होगा ...
विचलित मन में हैं सवालात कई हज़ार
जवाबों को सवालों से डरते तो देखा होगा ....
मन बावरा किस भंवर में जा फँसा था
चुप चाप ख़ुद से लड़ कर सम्बहलते तो देखा होगा....
कहीं खो गया था शायद मेरा वजूद इस भीड़ में
भीड़ से निकल मुझ से मिलते तो देखा होगा .....
पत्थर की कंपन से जन्मे भंवर को देखा होगा...
मेरा अक्स उस भंवर में अनजाने फंस गया था
कुछ छटपाटाकर उसे ऊबरते तो देखा होगा....
थी ज़िंदगी थमी सेहएर-रेगिस्तान जैसी
अमवास को उठते रेत के भंवर को देखा होगा ...
विचलित मन में हैं सवालात कई हज़ार
जवाबों को सवालों से डरते तो देखा होगा ....
मन बावरा किस भंवर में जा फँसा था
चुप चाप ख़ुद से लड़ कर सम्बहलते तो देखा होगा....
कहीं खो गया था शायद मेरा वजूद इस भीड़ में
भीड़ से निकल मुझ से मिलते तो देखा होगा .....
मेरी गुड़िया....
उसके
सावालातों के दायरे अब बढ़ने लगे हैं
सालों से मेरे जवाबों का पीछा करते करते...
पूछती है माँ तुम जल्दी घर क्यूं नही आती
क्या सारे दिन दफ़्तर में मेरी याद नही सताती ...
क्यूं करती हो तुम ग़ुस्सा मेरी नादानियों पे
जानती नही तुम भगवान होते हैं बच्चे ......
देखूं गर टीवी तो आँखों पे हो असर
कया आँखें आपकी है बनी कुछ अलग सी ....
चाँद आसमान में दिखता है कहना वो साथी है मेरा या
फिर वो है मामा .....
हर जवाब पर नया सवाल करने लगी है
लगाता है नन्ही गुड़िया मेरी बढ़ने लगी सी है....
कुछ ही सालों में....
जिन्दगी की अजब पहेलियों में उलझने लगी है
मासूमियात ने अब अलहद- पने ने जगह ली है...
जो चाँद तारे साथी थे उसके बचपन के
उस चाँद को देख रात आह वो भरने लगी है...
रखती ना थी क़दम जो बिना थामे मेरा दामन
आपने आँचल में शर्मा के वो सिमटने लगी सी है
थी गुड़िया मेरे घर आँगन की वो जो कल तक
दुल्हन बन सज़ संवर आज वो सजने लगी है
दरवाज़े पे आ के बारात उसकी जब खड़ी हुई
अहसास तब हुआ,गुड़िया मेरी अब हो गयी बड़ी
फूलों से अब उसकी डोली सजने लगी सी है
मेरे नन्ही कली फूल अब बन ने लगी है
सावालातों के दायरे अब बढ़ने लगे हैं
सालों से मेरे जवाबों का पीछा करते करते...
पूछती है माँ तुम जल्दी घर क्यूं नही आती
क्या सारे दिन दफ़्तर में मेरी याद नही सताती ...
क्यूं करती हो तुम ग़ुस्सा मेरी नादानियों पे
जानती नही तुम भगवान होते हैं बच्चे ......
देखूं गर टीवी तो आँखों पे हो असर
कया आँखें आपकी है बनी कुछ अलग सी ....
चाँद आसमान में दिखता है कहना वो साथी है मेरा या
फिर वो है मामा .....
हर जवाब पर नया सवाल करने लगी है
लगाता है नन्ही गुड़िया मेरी बढ़ने लगी सी है....
कुछ ही सालों में....
जिन्दगी की अजब पहेलियों में उलझने लगी है
मासूमियात ने अब अलहद- पने ने जगह ली है...
जो चाँद तारे साथी थे उसके बचपन के
उस चाँद को देख रात आह वो भरने लगी है...
रखती ना थी क़दम जो बिना थामे मेरा दामन
आपने आँचल में शर्मा के वो सिमटने लगी सी है
थी गुड़िया मेरे घर आँगन की वो जो कल तक
दुल्हन बन सज़ संवर आज वो सजने लगी है
दरवाज़े पे आ के बारात उसकी जब खड़ी हुई
अहसास तब हुआ,गुड़िया मेरी अब हो गयी बड़ी
फूलों से अब उसकी डोली सजने लगी सी है
मेरे नन्ही कली फूल अब बन ने लगी है
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