वो सड़क पर पड़ा था
पसीने से तराबोर
ख़ून से लथपथ
असहाय निराधार
कुछ ने मुह फेर लिया
कईयों ने बस घेर लिया
काना फूसी चलने लगी
"लगता भले घर का लगता हे भाई
कुछ मज़बूरी रही होगी"
अमबुलंस बुला दो कोई
भीड़ मे से एक आवाज़ आयी
"चलो,चलो,पुलिस केस हे
२०वि मंज़िल से छलांग हे लगाई"
भीड़ की फुसफुसाहट मे
उसकी आहे दब सी गयी
जब तक अमबुलंस आयी
साँसे थम थी गयी
एक क्षण के ग़ुस्से में
एक गलती उसने की
दूसरे पल के किस्से में
गलती औरों से हो गयी
एक बहते भाव की रवानी मे
एक और जिन्दगी फना हो गयी.......
रविवार, अक्तूबर 07, 2007
सदस्यता लें
संदेश (Atom)