शनिवार, जुलाई 14, 2007

एक अलसायी सी दोपहर ......

ख़ामोशी कह जाती है चुप से
कानो में कुछ मीठे बोल
आओ मिल जुल के बैठे
समय बड़ा ही है अनमोल
करे मनन्न आज हम तुम
इस अलसायी दोपहर को.....

जागती आँखों में बुनते
सपनो के ताने बाने को
चढ़ने दो परवान
इश्क़ है
मिलने दो ,अनजानो को.....

उलझा दो ख़ुद को सांसो मे
रोको ना उठते तूफ़ानो को
कल का पता किसे हे मौला ,
ये पल जी लेने दो परवानो को......

एक आल्साई सी दोपहर मे
भर दो रंग सतरंगी तुम
शाम की लाली फिर निखर के
आसमान में कोई एक
इंद्रधनुष उगा जाए......

उस शाम की सुबह भी शायद
कल जल्दी से आ जाए.......

5 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया. आजकल बहुत कम लिखा जा रहा है?

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  2. A perfect day-dream. Reminds me of Cliff Richard's "The Day I met Marie".....

    ....."Imagine a still summer's day
    when nothing is moving,
    least of all me.
    I lay on my back in the hay
    and the warm sun is soothing;
    It made me
    feel good
    to think I know Marie...."

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  3. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

    उलझा दो ख़ुद को सांसो मे
    रोको ना उठते तूफ़ानो को
    कल का पता किसे हे मौला ,
    ये पल जी लेने दो परवानो को......

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  4. आज इतवार है इसी लिये अलसायी दोपहर है। कल तो काम पर जाना है टिप्पणी करते समय भी दिन के एक बज रहे हैं :-)

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  5. लगता है लिखा भी खुमारी में है.. बहुत खूबसुरत...नज़ाकत से भरा....

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