" कौन शेखर ? " रसोईघर से निकलने नंदिनी ने पूछा .
"अरे ,मेरा कालेज के समय का घनिस्ष्ट मित्र था ,कालेज के बाद साथ नही रहा . फिर पिछले महीने मैं भोपाल गया था ,वही "जहाँ आरा "मे अचानक हे गए । बात तो नही हो पायी , उसकी फ्लिघ्त का वक्त था ,बस नुम्बेर बदले "सूरज बोले
" फिर "?
" फिर, अभी फोन आया ही की कल् रात की फ्लाईट से आ रहा हे तीन दिन के लिए "
"कैसे आना हो रहा हे उनका "नंदिनी ने पूछा
"अप्रवासी भारतीय दिवस हो रहा हे आयी एच सी मे,सरकार शेखर को सम्मानित कर रही हे,कल् रात को पहूचेगा और दो तीन दिन हमारे यहाँ ही ठहरेगा"सूरज बोले
"अच्छा "
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अगले दिन :
"लो शेखर,पहुच गए घर"टेक्सी का दरवाजा बंद करते हुये सूरज बोले
"भाभी जी।कैसी ही आप?"
"नमस्कार भाईसाहब। आपका सफ़र कैसा रहा "
"अछा था भाभी. एक प्याला गरम गरम चाय मिल जाये तो मज़ा आ जाएगा"शेखरबोले
"जी,अभी लायी" नंदिनी दौडती हुई रसोई गयी और चाय नाश्ता ले लायी।
पूरी रात दोनो दोस्तो की बातो मे गुज़र गयी .......
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अगला दिन:
सूरज आपने दफ़्तर चले गए और शेखर जैट लेग की वजह से देर दोपहर तक सोते रहे
दोपहर बाद का समय बनती और सोनू के साथ खेलने मे बिता दिया।बहुत जल्दी घुल मिल गए थे शेखर दोनो के लिए बहुत सारे खिलोने और चोक्लेत भी लाए
प्रोग्राम शाम के सात बजे क था और शेखर ने हम दोनो को साथ चलाने का न्योता दिया
दोपहर बाद से ही बादल घिर आये थे,५ बजते बजते ज़ोर दार बारिश शुरू हो गयी।
"बारिश के मौसम मे पकोदो का मज़ा ही अलग हे भाभी" आसमान को देखते हुये शेखर
"जी,ज़रूर, अभी बनाति हू चाय के साथ"मैने मुस्कुराते हुएय जवाब दिया।मुझे शेखर क स्वभाव अछा लगा,सौम्य,शान्त,घमन्ड का लेश मात्र भी नही।
शेखर भी गैस्ट रूम से ड्राइन्ग रूम मे आ गये। कमरे मे बैठे हुए उनकी नज़र शो केस मे लगी तस्वीरो पर पडी।तभी अचानक एक तस्वीर को देख कर ठिठक से गए.
"पकोडे तैय्यार हे भाइसाहब"नन्दिनी कमरे मे आते हे बोली
'अरे हा,हां लाईये ना भाभी और आपकी चाय कहॉ हे :"
"जी अभी आयी" कबसे सोच रही थी शेखर से उनके सम्मान के बारे मे पूछ्ना ,तो अब पूछूँगी
"ये तस्वीरे बहुत प्यारी हे,आप लोग घूमना पसन्द करते हे"शेखर ने पूछा।
"जी बहुत नही,साल मे एक बार गर्मियो क छुट्टियों मे कही चले जाते हे,पर कभी इन्डिया से बाहर नही गये"नन्दिनी
"वहा कोने मे जो एक तस्वीर हे,एक बुजुर्ग महिला हे,वो आपकी……।"
"जी, वो अम्मा जी हे,मेरी मा…"
"आपकी मा…???"
"जनम तो नही दिया पर बहुत प्यर दिया था अम्माजी ने मुझे"नन्दिनी
"बात पिछले साल की हे,सूरज का तबादला दिल्ली हो गया था पर बच्चो के स्चूल की वजह से मुझे भोपाल मे एक साल अकेले रहना पडा। एक बार मे बहुत बीमार पड गयी और बच्चे बुरी तरह से घबरा गये बस तभी मुलाक़ात हुई अम्माजी से। हुमारे पडोस मे रहती थी वो, बच्चे मदद मान्गने के लिये गये और वो तुरन्त आ गयी।मेर पूरा घर सम्भाला,मेरी सेवा की और जब तक मे ठीक नही हुई वो हुमारे साथ ।
मेरी माँ नही हे भाईसाहब,अम्माजी मे मुझे माँ मिली"
"उनका परिवार……।" शेखर ने
"एक बेटा हे,कही विदेश मे हे आपने परिवार के साथ ,कभी बताया नही उन्होने उसके बारे मे, बहुत स्वाभिमानी थी अम्माजी,उनका बेटा जो पैसे भेजता था,वो सारे अनाथालय मे दान कर देति। आपको पता हे,विधवा थि अम्मा जी,बडे जतन से बेटे को पाला पोसा,और वो उन्हे भूल गया। सोचा कि माँ को हर महीना पैसा भेज कर,एक फोन करके फ़र्ज़ पूरा हो गया'
"आपके आने के बाद फिर मुलाक़ात हुइ,कोई सम्पर्क …॥"शेखर ने पूछा
"नही,मे घर सेट करने मे बिसी हो गयी,पर अब ज़रूर एक दिन फोने करुन्गी"
"वो भाभी,दरसरल्……"इतना की कहा था शेखर ने कि नीचे से टेक्सी के होर्न की आवाज़ आयी।
"सूरज आ गये,जल्दि से तैयार होति हूँ ,आप भी तैयार हो जाये" कहते ही नंदिनी अपने कमरे कि तरफ़ दौडी
"तुम लोग तैयार नही हुये ,६ बज गये हे,दिल्ली का ट्रेफ़िक पता हे ना,लोधी कोलोनी पहुन्चते एक घन्टा लग जायेगा"सूरज भन्भनाते हुए बोले
"बस,अभी आयी"नन्दिनी ने आवाज़ दी॥
क्रमश...
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