कुछ कच्चे घरोंदो को
जब शक्ल देनी चाही
तो हाथ खुद ब खुद ही
मिटटी में सन् गए हैं
कोशिश हमारी ये थी
की हो जाये चराग रोशन
दिया बाती की जलती लौ ने
दमन फकत किये हैं
दूजे के कांधे
को हम
दीवार
तो हे समझे
पर औरों की क्या परवा
उनको पडे ज़रूरत
तो आँचल में अपने छुप कर
आगे निकल रहे हैं
हमने तो सिर्फ था चाहा
एक नेक काम करना
शर्मिंदगी से हम ही
खुद मे सिमट रहे हैं
हे कांच के सब रिश्ते
पल भर में चिट्कते हे
ऐसी फकत ही दुनिया
ऐसे फकत हे नाते
क्या कहे क्या सुने हम
सम् मौन अब रखते हैं
कुंआरी उम्र की देहरी पर
2 हफ़्ते पहले



"हे कांच के सब रिश्ते
जवाब देंहटाएंपल भर में चिट्कते हे"
यही सच है
good poetry good expression
जवाब देंहटाएंऐसी फकत ही दुनिया
जवाब देंहटाएंऐसे फकत हे नाते
क्या कहे क्या सुने हम
सम् मौन अब रखते हैं
--
यही बेहतर है. अच्छे भाव.
रिश्ते टुट्ते नही , सिर्फ़ बदलते है,
जवाब देंहटाएंसाथ छुटने पर , है ये कैसा गम तुम्हे??
ताउम्र अकेले ही तो हम चलते हैं
:)
Very good effort.
जवाब देंहटाएंVery good effort.
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