इन बैरागी नैनन का चित्त ना जाने कोई
देख तुम्हे अनदेखा कर दे
ना देखे तो व्याकुल होये......
इन् मदमाते अधरो का
भेद ना जाने कोई
संग तुम हो तो मौन रहे
तुम जाओ तो तेरा नाम जप लोय.....
इन् बैरन कदमो का
राज़ ना जाने कोई
साथ तुम्हारे ना चले,
तुम जाओ तो पीछे होये.....
मन मे बसे तुम सान्वरे
तुम क्यू ये ना समझे
ना मेरी मे हां हे छुपी
क्या तुम समझे
हा, तुम अब समझे…
और अब, मे पूर्ण तेरी हुई प्रिय
कुंआरी उम्र की देहरी पर
2 हफ़्ते पहले



प्रेम के प्रति समर्पण की भावनाओ को दर्शाती एक सुन्दर रचना है। बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंभागते मन को भी कोई बंधन चाहिए…मगर मन तो खोजी और तलाश उसकी करता है जिसे वह रम सके।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना!!!
डिवाइन इडिया जी, परमजीत जी,विकास जी :
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सहारने के लिये शुक्रिया
बधाई इस गहन रचना के लिये.
जवाब देंहटाएंएक अनोखी अदा है इस कविता में…एक मुलायम एहसास, स्त्रीत्व का नटखटपन, उसके मन की नाज़ुक चपलता और अपने प्रिय द्वारा समझ लिये जाने की आशा और विश्वास साफ़ झलकता है। एक नारी के मन के कोमल रहस्य को खोलती भाव-भीनी रचना पढ़ कर कुछ गुदगुदी सी महसूस हुई।
जवाब देंहटाएंवाह जनाब वाह!!!