आदतें भी अजीब होती हैं.....
सिगरट के धुए की तरह
साँसों में बस गए हो तुम
निकोटीन की डोस बन कर.....
दिल चाहता है कि
यह कमबख्त धुआ
ज़मी से उड़ कर-
बस जाए आँखों में तेरी
दो बूँद आंसू बन कर .....
और जब भी नम पलके रो कर
आँखों से खफा हो जाए ,
नादान आंसू ढलक के
उतर जाए दिल में तेरे......
आगोश में साँसों को लिए
बस जाए धड़कन की जगह
और........
मेरे होने की मीठी चुभन
तेरे दिल में टीस दे गुज़र जाए
मेरे न होने का सबब लिए हुए ....
क्यूँ न मैं फिर से जी लूँ एक पल
जैसे जिया करती थी सदियों पहले ...
- एक पल भी एक सदी से कम तो नही -
आदतें भी अजीब होती हैं...
जीने नही देती जीते - जीते
और मर के मरने भी नही देती ...
** शीर्षक के लिए आभार मेरे मित्र "मस्तो "को , उन्हें यहाँ पढ़े :
ह्त्त्प://मस्तो९६.ब्लागस्पाट.कॉम/२००७/०८/ब्लॉग-पोस्ट_१४.हटमल
कुंआरी उम्र की देहरी पर
2 हफ़्ते पहले



